नई दिल्ली: अखबारों और टीवी चैनलों में बाल दिवस की सुर्खियां छाई हुई हैं. स्कूलों में भी रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. पंडित नेहरू को याद करते हुए बच्चों के सुनहरे भविष्य के कसीदे पढ़े जा रहे हैं. बाल दिवस की चहुओर खुमारी में हमारा दिल भी बच्चा बनकर कुलाचे मारने लगा और ले गया उस दुनिया में जब स्कूल में हर शनिवार को आखिरी घंटे में बाल सभा हुआ करती थी. हम ठहरे गांव के उत्पाती और उधमी बालक, सो बाल सभा में खुद को काबू में रखते हुए चुपचाप बैठे रहते थे. क्या दिन थे वे भी. लेकिन आज के बच्चों का बचपन याद करते ही रायन स्कूल का मासूम प्रद्युम्न, या फिर मध्य प्रदेश देवास में 10 साल की मासूम का हाथ-पैर बंधे, मुंह में कपड़ा ठुंसी हुई लाश सामने आ जाती है, तो रोम-रोम सिहर उठता है. मुझे याद नहीं कि हमारे बचपनकाल में मेरे या मेरे साथ किसी भी अन्य लड़के-लड़की के साथ ऐसा कुछ भी ऐसा हुआ हो, जिसने बाल मन पर चोट की हो. हम निश्चिंत ही देर शाम तक गलियों में धमाचौकड़ी मचाते हुए घूमा करते थे, घरों की सीमाएं बचपन के लिए नहीं थीं. लेकिन आज ऐसा क्या हो गया.
आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं तो एक गैर सरकारी संगठन के एक सर्वे में 53.22 प्रतिशत बच्चों ने एक या अधिक प्रकार के यौन शोषण का सामना करने की बात कही. 21 फीसदी बच्चों ने गंभीर यौन शोषण का सामना किया है. आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और दिल्ली से लड़कों और लड़कियों के गंभीर यौन शोषण के सबसे ज्यादा मामले होते हैं. 50 फीसदी बच्चों का यौन उत्पीड़न उन्हीं के घरों में उनके परिवार या रिश्तेदारों द्वारा किया होता है. #MeToo भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. इस हैशटैग महिलाएं और लड़कियां खुलकर बता रही हैं कि बचपन में उनके साथ भी शोषण हुआ था. इनमें एक आम लड़की से लेकर खिलाड़ी, अभिनेत्री यहां तक राजनीति से जुड़ी हस्तियां भी शामिल हैं.
शारीरिक शोषण के साथ-साथ बच्चे भावनात्मक शोषण का भी शिकार हैं. और यह भावनात्मक शोषक किसी और के द्वारा नहीं बल्कि खुद मां-बाप के द्वारा किया जाता है. इसका शोषणा का भी सबसे ज्यादा शिकार लड़कियां ही होती हैं. आज भी दिल्ली के अंदर ही लड़कियों के जन्म पर कई घरों में खुद मैंने मातम पसरे हुए देखा है. शिक्षा के नाम पर बच्चों को एक अलग प्रकार के शोषण से गुजरना पड़ता है. फलां का बच्चा ऐसा है और हमारा इतना कमजोर, ऐसा लगभग हर घर में देखा और सुना जाता है.
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बाल शोषण पर कराए एक अध्ययन से पता चला कि विभिन्न प्रकार के शोषण में पांच से 12 वर्ष तक की उम्र के छोटे बच्चे शोषण और दुर्व्यवहार के सबसे अधिक शिकार होते हैं. इन शोषणों में शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण शामिल है. आंकड़ों को देखें तो साल 2009 से साल 2014 के दौरान बाल उत्पीड़न मामले में 151 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. साल 2009 में जहां बाल उत्पीड़न के 5,484 मामले दर्ज की गई थी वहीं साल 2014 में 13,766 मामले दर्ज किए गए. Protection of Children from Sexual Offences (पॉक्सो एक्ट) के तहत 8,904 मामले और बालिकाओं के साथ अश्लील हरकतें करने की श्रेणी के तहत 11,335 मामले दर्ज किए गए.
कैलाश सत्यार्थी ने सच ही कहा,’अगर हमारा एक भी बच्चा शोषण का शिकार होता है, तो हमारे विकसित समाज या विकसित देश की परिकल्पना कभी साकार नहीं होगी.’