स्पेशल कोर्ट बनाने को मोदी सरकार राजी

सांसदों और विधायकों पर चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने इन मामलों को निपटाने के लिए एक साल तक 12 स्पेशल कोर्ट चलाने पर सहमति जताई है. इन स्पेशल कोर्ट में करीब 1571 आपराधिक केसों पर सुनवाई होगी. ये केस 2014 तक सभी नेताओं के द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इन केसों का निपटारा एक साल के अंदर किया जाना चाहिए. कानून मंत्री की ओर से दाखिल हलफनामे में इस बात की पुष्टि हुई है.

आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी. जबकि केंद्र सरकार ने इसे खारिज करते हुए 6 साल की बैन को ही लागू रखने को कहा था.

गुजरात और हिमाचल चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं को करारा झटका देते हुए उनके खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई जल्द पूरी करने के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का प्लान पेश करने को कहा था.

कोर्ट का आदेश था कि छह हफ्ते में सरकार अपना ड्राफ्ट प्लान कोर्ट को सौंपे, जिसमें फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या और समय की जानकारी भी रहे, ताकि किसी भी दागी जनप्रतिनिधि के खिलाफ दाखिल मुकदमे का निपटारा साल भर के भीतर हो जाए.

आपको बता दें कि अभी हाल ही में आई एडीआर ने 4852 विधायकों और सांसदों के हलफनामे का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी. जिसमें दागी नेताओं को लेकर कई खुलासे हुए थे.

-जिन 51 जनप्रतिनिधियों ने अपने हलफनामे में महिलाओं के खिलाफ अपराध की बात स्वीकार की है उनमें से 3 सांसद और 48 विधायक हैं.

-334 ऐसे उम्मीदवार थे जिनके खिलाफ महिलाओं के प्रति अपराध के मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन उन्हें मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों ने टिकट दिया था.

-हलफनामे के अध्ययन से यह बात सामने आई कि आपराधिक छवि वाले सबसे ज्यादा सांसद और विधायक महाराष्ट्र में हैं, जहां ऐसे लोगों की संख्या 12 थी. दूसरे और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल और ओडिशा हैं.

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