रांची में मनरेगा मजदूरों ने मांगे अपने अधिकार

रांची: झारखंड की राजधानी रांची के बिरसा चौक पर राज्य के 12 जिलों से आए लगभग 1,000 मनरेगा व अन्य मज़दूरों ने उनके रोजी-रोटी के अधिकारों के लगातार हनन के विरुद्ध धरना दिया. यह धरना भोजन का अधिकार अभियान व नरेगा वॉच द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था. बता दें कि पिछले कुछ महीनों में झारखंड में भूख से कई मौतें हुई हैं. ये मौतें करोड़ों लोगों को अपने नरेगा और जन वितरण प्रणाली के अधिकारों को पाने में आने वाली परेशानियों के प्रतीक हैं.

धरने में शामिल कई मजदूरों ने उन्हें होने वाली कठिनाइयों के बारे में बात रखी. इस कानून को पारित होने के 10 वर्षों बाद भी मजदूरों को हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है, चाहे समय पर काम पाने के लिए, समय पर भुगतान के लिए या फिर मज़दूरी दर बढ़ाने के लिए. उदाहरण के लिए, मज़दूरी भुगतान में विलम्ब अभी भी जारी हैं, बल्कि भुगतान को आधार से जोड़ने के बाद तो विलम्ब बढ़ गए हैं. बरवाडीह से आए विलास सिंह को काम करने के कई महीनों बाद तक भी अपनी मजदूरी नहीं मिली है. पहले उन्हें बोला गया था कि उनका खाता बंद हो गया है. फिर जब उन्होंने KYC की प्रक्रिया कि लिए अपना आधार नंबर व अन्य जानकारी दी, तो उन्हें सन्देश आया कि उनका आधार ‘अवैद्य’ है और तो और, सरकार मज़दूरी भुगतान में हो रहे विलम्ब के लिए देय मुआवज़े के एक बहुत छोटे अंश का ही भुगतान कर रही है.

अजीम प्रेमजी के राजेंद्रन नारायणन ने बताया कि उनके द्वारा किए गए एक शोध में यह पता चला कि 1,200 करोड़ रुपये का मुआवजा देय था, सरकार के अनुसार मज़दूरों को मुआवज़े के रूप में केवल 519 करोड़ रुपये ही मिलना था, जिसमें से वास्तव में केवल 30 करोड़ रुपये का ही भुगतान हुआ है. बता दें कि नरेगा मज़दूरी का कम दर भी मज़दूरों के शोषण का एक स्त्रोत है. पिछले वर्ष झारखंड की नरेगा मज़दूरी केवल पांच रुपये ही बढ़ी थी (162 रुपये से), और इस वर्ष केवल 1 रुपये.

धरने में उपस्थित लोगों ने जन वितरण प्रणाली की दयनीय स्थिति के बारे में भी सुना. आधार से जुड़ा न होने के कारण राशन कार्ड रद्द हो जाना, राशन कार्ड में परिवार के कुछ सदस्यों के नाम न होना, POS मशीन द्वारा उंगलियों के निशान न पहचाने जाना, भ्रष्ट डीलरों द्वारा अनाज में कटौती करना जन वितरण प्रणाली की कुछ आम समस्याएं हैं. गढ़वा के मानिकचंद कोरवा ने बताया कि हालांकि, आदिम जनजाति परिवारों को ‘डाकिया योजना’ के तहत अपने घर तक राशान मिलना है, वे इस सुविधा से वंचित हैं और उन्हें नियमित रूप से पूरा अनाज नहीं मिलता.

झारखंड की जन वितरण प्रणाली, जो आधार के कारण पहले से ही काफी कमज़ोर है. अब नकद हस्तांतरण से और खतरे में है. अफज़ल अनीस और आकाश रंजन ने रांची ज़िले के नगडी प्रखंड में शुरू हुए नकद हस्तांतरण के पायलेट की जांच के निष्कर्ष रखें. उन्होंने बताया कि गरीब परिवारों को बैंक से राशि निकालकर 32 रुपये प्रति किलो के दर से राशन खरीदने में कई समस्याएं हो रही हैं. कई बार परिवारों को पता नहीं चलता कि पैसा उनके किस खाते में गया है. उन्होंने यह भी कहा कि इस जन-विरोधी नीति का राज्य के बाकी क्षेत्रों में विस्तार का भी खतरा है.

हाल में हुई भूख से मौतों पर भी काफ़ी चर्चा हुई. तारामनी साहू (जिन्होंने सिमडेगा में 11-वर्षीय लड़की (संतोषी कुमारी) की भूख से हुई मृत्यु पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया) ने इस घटना के तथ्यों को लोगों के समक्ष रखा. 20 अगस्त 2017 से वे संतोषी के परिवार को एक नया राशन कार्ड दिलवाने का प्रयास कर रही थी, क्योंकि परिवार का पुराना राशन कार्ड आधार-सीडिंग न होने के कारण रद्द हो गया था. (27 मार्च 2017 को झारखंड के मुख्य सचिव ने आधार से न जुड़े सब राशन कार्डों को रद्द करने का आदेश दिया था.) पर संतोषी राशन के अभाव में आठ दिन भूखी रही. तब से, तारामनी और संतोषी की मां को झारखंड सरकार द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. इस मामले, और बाकी भूख से हुई मौतों में सरकार तत्थ्यों को मानने के लिए राजी नहीं है और उल्टा भूख के शिकार हुए परिवारों को परेशान कर रही है. धरने का पहला चरण लोगों के भोजन, रोज़गार व अन्य अधिकारों के उलंघन के विरुद्ध हुए थाली बजाओ कार्यक्रम से संपन्न हुआ.

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