नई दिल्ली: भारतीय टीम के खिलाड़ी शुक्रवार (6 अक्टूबर) को यहां अमेरिका के खिलाफ फीफा अंडर-17 विश्व कप के शुरुआती लीग मुकाबले के लिये जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में उतरते ही इतिहास के सुनहरे पन्नों का हिस्सा बन जायेंगे और उनकी निगाहें मैदान पर परिणाम की चिंता किये बिना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर जरूरी अनुभव हासिल करने पर लगी होगी. मणिपुरी मिडफील्डर अमरजीत सिंह कियाम एंड कंपनी किसी भी फीफा टूर्नामेंट में शिरकत करने की उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय टीम बन जायेगी जो अभी तक बाईचुंग भूटिया, आई एम विजयन और सुनील छेत्री जैसे भारतीय महान फुटबॉलर के हिस्से में नहीं आ सकी है. साठ से ज्यादा वर्ष पहले भारत ने उरुग्वे (जब यह आमंत्रण टूर्नामेंट होता था) में 1950 विश्व कप में भाग लेने के निमंत्रण पर जूते पहनकर हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. उसके बाद यह अंडर-17 टीम विश्व कप में भाग लेने वाली पहली टीम होगी.
भारत पहली बार किसी फीफा विश्व कप की मेजबानी कर रहा है, जिसकी बदौलत उसे इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का मौका मिला जिसके 52 मैचों का आयोजन कल से 28 अक्तूबर तक यहां दिल्ली समेत मुंबई, कोच्चि, गोवा, गुवाहाटी और कोलकाता में किया जायेगा. चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और संयुक्त अरब अमीरात के बाद भारत पांचवां एशियाई देश है जो 1985 से शुरू हुए इस टूर्नामेंट की मेजबानी कर रहा है.
अमेरिका, कोलंबिया और दो बार की चैम्पियन घाना के साथ कठिन ग्रुप ए में शामिल भारतीय टीम को निश्चित रूप से 24 टीमों के टूर्नामेंट के अगले दौर में पहुंचने के दावेदार के रूप में नहीं देखा जा रहा है लेकिन टीम के खिलाड़ी जोश से भरे हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिये बेताब हैं. इसमें अमेरिकी टीम प्रबल दावेदार है जिसके ज्यादातर खिलाड़ी मेजर लीग सॉकर की युवा टीम में खेल चुके हैं और कुछ तो शीर्ष यूरोपीय क्लबों के लिये खेलने के लिये तैयार हैं.
टीम के मुख्य कोच लुई नोर्टन डि माटोस को खिलाड़ियों के साथ तैयारी के लिये केवल आठ महीने का समय मिला है, लेकिन उन्हें अपने खिलाड़ियों पर अच्छा प्रदर्शन करने का पूरा भरोसा है, हालांकि वह भी मानते हैं कि अगर टीम किसी भी लीग मैच में नहीं हारती और ड्रा भी हासिल कर लेती है तो यह भी उनके लिये अच्छा परिणाम होगा.
हालांकि अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने मेजबान होने के नाते अपने खिलाड़ियों की तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और उन्हें अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर मुहैया कराया है जिसमें यूरोप का ट्रेनिंग दौरा और मेक्सिको में टूर्नामेंट शामिल हैं. लेकिन खिलाड़ियों के लिये इतना ही काफी नहीं है जिन्हें लचर बुनियादी ढांचों से जूझना पड़ता है और उनके लिये जमीनी स्तर पर विकास कार्यक्रम नहीं मिलते और कोचिंग प्रणाली भी प्रभावशाली नहीं है.
महासंघ के साथ ही कुछ पूर्व खिलाड़ियों को भी इस टूर्नामेंट से काफी उम्मीद है कि भारत 1950 और 1960 के दशक जैसा मजबूत होने की शुरुआत करेगा. अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी से निश्चित रूप से बड़े टूर्नामेंट के आयोजन के रास्ते भी खुल जायेंगे जिसमें अंडर-20 फीफा विश्व कप टूर्नामेंट शामिल है जिसके लिये भारत ने 2019 चरण के लिये बोली लगायी है.
भारतीय टीम से हालांकि किसी ने ज्यादा उम्मीदें नहीं लगायी हैं और उसके ग्रुप चरण से अगले दौर में पहुंचने की संभावना भी कम है, लेकिन कोच डि माटोस चाहते हैं कि खिलाड़ी बिना किसी दबाव के प्रतिस्पर्धी होकर खेलें और गोल का कोई मौका नहीं गंवायें. उन्होंने अमेरिका के खिलाफ मुकाबले के बारे में कहा, ‘‘उनका आक्रमण काफी मजबूत है और हमें डिफेंस में मजबूत होना होगा. ’’ वहीं अमेरिका के मुख्य कोच जॉन हैकवर्थ ने भारत को हल्के में लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘हम पहले एक बार भारत के खिलाफ खेल चुके हैं और उनके खिलाफ सफल रहे थे. लेकिन यह विश्व कप का शुरूआती मैच नहीं था और वे विश्व कप की मेजबानी भी नहीं कर रहे थे. उन्हें काफी घरेलू समर्थन मिलेगा.’’
प्रत्येक ग्रुप में शीर्ष पर रहने वाली दो टीमें और ग्रुप में तीसरे स्थान पर रहने वाली सर्वश्रेष्ठ चार टीमें नॉकआउट चरण में जगह बनायेंगी. टूर्नामेंट में तीन बार की चैम्पियन ब्राजील, यूरोपीय विजेता स्पेन और मेक्सिको ट्रॉफी जीतने की प्रबल दावेदार हैं, जबकि दो बार की चैम्पियन घाना, जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका भी अपने प्रदर्शन से हैरान कर सकती हैं. पिछले साल ब्रिक्स चैम्पियनिशप में ब्राजील के खिलाफ शानदार गोल करने वाले मिडफील्डर कोमल थाटल की कोशिश वैसा ही प्रदर्शन करने पर लगी हैं जिनका मानना है कि टीम के खिलाड़ी मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह से तैयार हैं.