जीएसटी से धंधे पर पड़ा काफी फर्क: व्यापारी

दिल्ली के चांदनी चौक बाजार में आमतौर पर दिवाली के पहले माहौल ऐसा होता है कि खचाखच भीड़ की वजह से पैदल तक चलना मुश्किल होता है, लेकिन इस बार बात वैसी नहीं है. देश के सबसे बड़े बाजारों में शुमार चांदनी चौक में माहौल कुछ ठंडा सा है. जिन व्यापारियों को बीजेपी का सबसे बड़ा वोट वर्ग समझा जाता है वह मायूस भी हैं और नाराज भी है. उनका कहना है कि जीएसटी की वजह से उनके धंधे पर काफी फर्क पड़ गया है.

कपड़ों का थोक व्यापार करने वाले रितेश कालरा बताते हैं कि बिक्री 30 से 40 फीसदी तक कम हो गई है. छोटे शहरों से जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सामान चांदनी चौक से खरीद कर ले जाते थे उनकी संख्या काफी कम हो गई है. यह हालत तब है जब चांदनी चौक में व्यापार करने वाले ज्यादातर व्यापारी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं और जीएसटी के हिसाब से टैक्स चुकाने लगे हैं.

जीएसटी के नियमों के मुताबिक जिन व्यापारियों का सालाना कारोबार 20 लाख रुपए से कम वो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. लेकिन चांदनी चौक में ही कपड़ों का कारोबार करने वाले रमेश जैन बताते हैं कि मुश्किल यह हो रही है कि जिन व्यापारियों ने जीएसटी में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, वह यहां से माल खरीदने के बाद बाहर ले ही नहीं जा पा रहे हैं. क्योंकि ट्रांसपोर्ट में माल बुक करने के लिए जीएसटी वाला बिल होना जरूरी है. कपड़े के व्यापार के ऊपर वैसे भी महंगाई की मार पड़ी है क्योंकि कपड़ों पर पहले कोई टैक्स नहीं लगता था और अब 5 प्रतिशत जीएसटी लग रहा है.

लेकिन व्यापारियों का कहना यह है कि जो दिक्कत आ रही है उसके बारे में सरकार के नुमाइंदों से बार बार बताने के बाद भी अभी तक कुछ नहीं हुआ है. बड़े व्यापारी कहते हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स भरने का खर्चा और सीए को दिए जाने वाली फीस काफी बढ़ गई है. जो छोटे दुकानदार रिटर्न भरने के लिए सीए या अकाउंटेंट की सेवा नहीं ले सकते वह जीएसटी लागू होने के बाद लगातार अपने बिल से जूझ रहे हैं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है की दुकानदारी करें या अकाउंटेंट का काम करें और अपना रिटर्न भरने में हर महीने कई घंटे बर्बाद करें.

सिर्फ व्यापारी परेशान हो ऐसा नहीं है. जीएसटी का टैक्स रिटर्न दाखिल करने में जो वकील या फिर सीए लगे हैं उनका सिर दर्द भी जीएसटी लागू होने के बाद काफी बढ़ गया है. सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि जीएसटी लागू होने से पहले व्यापारियों को 3 महीने में एक बार टैक्स रिटर्न भरना होता था. अब उन्हें हर महीने 4 बार टैक्स रिटर्न भरना होता है. 5 तारीख तक जो व्यापारी टैक्स रिटर्न नहीं भर पाते, उन्हें प्रतिदिन ₹200 के हिसाब से जुर्माना भी देना होता है.

सेल्स टेक्स बार एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष नीरा गुप्ता का कहना है कि जीएसटी लागू होने के बाद उनके जैसे लोगों का जीना हराम हो गया है, क्योंकि जीएसटी के लिए सरकार ने जो पोर्टल बनाया है वह बार-बार क्रैश होता रहता है. पोर्टल ठीक से काम नहीं करने की वजह से एक ही काम के लिए उन्हें घंटों कंप्यूटर के सामने बैठे रहना होता है. उनका कहना है कि सरकार दावा चाहे कुछ भी करें लेकिन सच्चाई यह है कि जीएसटी टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए जो सिस्टम सरकार ने बनाया है वो वाहियात है और उसमें अगर कोई भूल हो जाए तो उसे सुधारने की व्यवस्था भी नहीं है.

नीरा गुप्ता ने बताया कि सिस्टम के भी काम नहीं करने की वजह से कई बार ऐसा होता है कि अपने क्लाइंट के बदले उन्हें अपनी तरफ से जुर्माने की रकम भरनी होती है. छोटे व्यापारियों की दिक्कत दूसरे तरह की है. सरकार की तरफ से उन्हें कहा गया था कि पहले उन्हें जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराना है और फिर बाद में उन्हें इससे अलग कर दिया जाएगा. जो छोटे व्यापारी जीएसटी के दायरे में आ गए उन्हें अब इस से बाहर निकलने के लिए जो फॉर्म भरना है वही उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.

अगर आप खरीदारों से बात करें तो उनकी शिकायत यह है कि जीएसटी लागू होने के बाद सामान चीजों की कीमतें बढ़ गई है और सरकार के तमाम दावों के बावजूद दुकानदार जीएसटी के नाम पर उनसे ज्यादा कीमत वसूल रहे हैं.

मोदी के भरोसा दिलाने के बाद लोगों में उम्मीद जगी है कि शायद सरकार सिस्टम को ठीक करने के लिए जल्द कुछ कदम उठाएगी. लेकिन फिलहाल तो जीएसटी सबके लिए नाराजगी और परेशानी का सबब बना हुआ है.

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