नई दिल्लीः मोदी सरकार के पहले दो साल के दौरान आयकर समेत प्रत्यक्ष कर चुकाने वालों की संख्या करीब 55 लाख बढ़ी. इसमें व्यक्तिगत आयकरदाताओं की संख्या ही 53 लाख रही.
प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) में व्यक्तिगत आयकर यानी पर्सनल इनकम टैक्स के अलावा निगम कर यानी कॉरपोरेट टैक्स मुख्य रुप से शामिल होते है. तकनीकी तौर पर ऐसे करदाताओं को असेसी कह कर पुकारा जाता है. नियमों के मुताबिक, असेसी को हर वित्त वर्ष के दौरान हुई कमाई का ब्यौरा अगले वित्त वर्ष में तय तारीख तक देना होता है. वित्त वर्ष के अगले वर्ष को असेसमेंट इयर कहा जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो यदि आप वेतनभोगी है तो 31 मार्च 2018 को खत्म होने वाले वित्त वर्ष यानी 2017-18 के दौरान हुई कमाई का ब्यौरा अगले वित्त वर्ष यानी 2018-19 के दौरान 31 जुलाई तक जमा कराना होगा. यहां 2018-19 असेसमेंट इयर कहा जाएगा.
आयकर विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, असेसमेंट इयर 2014-15 (वित्त वर्ष 2013-14) के अंत में डायरेक्ट टैक्स असेसी की संख्या 5.72 करोड़ से ज्यादा थी जो असेसमेंट इयर 2016-17 (वित्त वर्ष 2015-16) के अंत में 6.27 करोड़ के करीब पहुंच गयी. वैसे उम्मीद है कि इसमें और ब़ढ़ोतरी होगी, क्योंकि असेसमेंट इयर 2016-17 के लिए कुछ शर्तों के साथ 31 मार्च 2018 तक रिटर्न दाखिल किया जा सकता है.
कर से कुल कमाई में प्रत्यक्ष कर की हिस्सेदारी
आंकड़े ये भी बताते हैं कि कर से कुल कमाई में प्रत्यक्ष कर की हिस्सेदारी घटी है. मसलन, वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान सभी तरह के कर (आयकर, निगम कर, उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, सेवा कर वगैरह) से कुल मिलाकर 12.39 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई जो 2016-17 के अंत में 17.11 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है. लेकिन प्रत्यक्ष कर की हिस्सेदारी 2014-15 में 56.16 फीसदी थी जो 2016-17 में घटकर 49.66 फीसदी रह गयी है. वैसे ध्यान रहे कि 2009-10 के दौरान कुल कर में प्रत्यक्ष कर की हिस्सेदारी अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 60.78 फीसदी पर पहुंची थी.
प्रत्यक्ष कर से कमाई में कौन सा राज्य अव्वल
प्रत्यक्ष कर से आमदनी जुटाने में महाराष्ट्र ने अपना पहला स्थान बरकरार रखा है. यहां से 2016-17 के दौरान 3.14 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी हुई. यानी प्रत्यक्ष कर से कुल कमाई में करीब 37 फीसदी अकेले इसी राज्य से आया. दूसरी ओर 1.08 लाख करोड़ रुपये के साथ दिल्ली दूसरे, 0.85 लाख करोड़ रुपये के साथ कर्नाटक तीसरे, 0.60 लाख करोड़ रुपये के साथ तमिलनाडु चौथे और 0.38 लाख करोड़ रुपये के साथ गुजरात पांचवे स्थान पर रहा.
कर वसूली की लागत
कर से कमाई तो बढ़ी ही है, कर वसूलने की लागत भी बढ़ी है. इसकी एक वजह कर अधिकारियों के वेतन व भत्तो में बढ़ोतरी है. वित्त वर्ष 2013-14 में जहां 100 रुपये के कर वसूलने की लागत 57 पैसे थी वो 2014-15 में बढ़कर 59 पैसे, 2015-16 में 61 पैसे और 2016-17 में बढ़कर 66 पैसे हो गयी. फिर भी आयकर विभाग का दावा है कि कर वसूलने की लागत दुनिया के विभिन्न देशें के मुकाबले काफी कम है.