मुंबई: बाजार नियामक सेबी ने कंपनियों की साख निर्धारण करने वाले रेटिंग एजेंसिंयों के लिये भी शेयरहोल्डिंग की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत रखपने का प्रस्ताव किया है. सेबी ने कहा है कि एक रेटिंग एजेंसी दूसरी रेटिंग एजेंसी में 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी नहीं रख सकेगी. इसके साथ ही रेटिंग एजेंसी के लिये न्यूनतम नेटवर्थ मौजूदा 5 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 25 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया है. इसके अलावा रेटिंग एजेंसियों के प्रवर्तकों की वित्तीय तथा परिचालानात्मक पात्रता नियमों को भी कड़ा करने का प्रस्ताव किया है. इसके साथ व्यापक स्तर पर खुलासे की जरूरत का भी प्रस्ताव किया गया है.
सेबी के इन प्रस्तावित नियमों का स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, मूडीज और फिच जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों पर भी प्रभाव पड़ेगा. इन कंपनियों की कई घरेलू एजेंसियों में हिस्सेदारी के साथ उनकी प्रत्यक्ष मौजूदगी भी है. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन अजय त्यागी ने कहा कि नियामक ने निर्णय किया है कि कोई एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी किसी दूसरी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी में 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी या मताधिकार नहीं रख सकेगी और उनका दूसरी एजेंसी के बोर्ड में भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा. इसके अलावा किसी रेटिंग एजेंसी में शेयरों अथवा मताधिकार के इस प्रकार के अधिग्रहण जिसके उनके ऊपर नियंत्रण में बदलाव होता हो, ऐसे अधिग्रहण से पहले सेबी की पहले से मंजूरी लेना जरूरी होगा.
नियामक ने कहा, ‘‘….पंजीकृत साख निर्धारण एजेंसी किसी दूसरी रेटिंग एजेंसी में सीधे या परोक्ष रूप से 10 प्रतिशत से अधिक शेयर या वोटिंग अधिकार नहीं रखेंगी.’’ साथ ही रेटिंग एजेंसियों के लिये न्यूनतम नेटवर्थ की सीमा मौजूदा 5 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 25 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है. सेबी के इस कदम से ‘रेटिंग चुनने’ और चेहरा-मुहरा देखकर साख निर्धारण करने की गतिविधियों पर अंकुश लगेगा.
प्रस्ताव के तहत रेटिंग एजेंसी के प्रवर्तकों को पंजीकरण की तारीख से तीन साल की अवधि के लिये न्यूनतम 26 प्रतिशत हिस्सेदारी बनाये रखनी होगी. नियामक ने कहा, ‘‘ कोई भी विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी जो कि वित्तीय कार्य बल (एफएटीएफ) के अधिकार क्षेत्र में वहां के कानून के तहत गठित और पंजीकृत होगी ऐसी एजेंसियां ही भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्थापित करने की पात्र होंगी.’’
इसके अलावा साख निर्धारण एजेंसियों को वित्तीय उत्पाद और आर्थिक या वित्तीय शोध के अलावा किसी भी अन्य गतिविधियों के लिये अलग इकाई गठित करनी चाहिए. साथ ही सेबी ने खुलासा नियमों को मजबूत करने का प्रस्ताव किया है. इसके तहत एजेंसियों को सालाना एकीकृत वित्तीय परिणाम, तिमाही आधार पर लाभ एवं नुकसान तथा संपत्ति एवं देनदारी : बही-खातों के बारे में छमाही आधार पर घोषणा करनी होगी.