अंदरूनी कलह ने कराई AAP की फजीहत

नई दिल्ली: भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी (आप) अब पांच बरस की हो गई है. अन्ना आंदोलन के दौर से निकलकर अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2012 में राजनीतिक पार्टी बनाई और वह दिल्ली की सत्ता पर भी काबिज हुए. लेकिन पार्टी की रंगत धीरे-धीरे धूमिल होती गई और इसके लिए 2017 भी निराशाजनक ही रहा. आप ने विस्तार के इरादे से कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन कहीं सफलता हाथ नहीं लगी. पार्टी में टूट-फूट, विरोधियों ने व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए. गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके. भ्रष्टाचार के आरोपों पर आप संयोजक अरविंद केजरीवाल चुप्पी साधे रहे.

साल 2017 की शुरुआत में पार्टी ने विस्तार की नीति के तहत पंजाब और गोवा में चुनाव लड़ने का फैसला किया. पंजाब में सत्ता का दावा कर रही पार्टी विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रही, तो वहीं गोवा में पार्टी के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके. पार्टी इस हार से उबरने के लिए बड़े जोर-शोर से दिल्ली नगर निगम चुनाव में उतरी, लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस बीच पार्टी की अंदरूनी कलह ने और फजीहत कराई. नगर निगम चुनाव के बाद बवाना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भारी अंतर से जीत ने साबित किया कि लोगों में आप का ‘क्रेज’ अब भी बरकरार है. पार्टी ने कहा कि इस उपचुनाव में ईवीएम में वीवीपैट लगे होने का फायदा उसे मिला.

अरविंद केजरीवाल ने पंजाब चुनाव में हार का ठीकरा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ पर फोड़ा, तो इस बीच पार्टी विधायक और जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्रा को पानी की दिक्कतों की शिकायतें आने पर पद से हटा दिया गया. इसके बाद मिश्रा ने स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. आमतौर पर हर बात पर मुखर होकर बोलने वाले केजरीवाल दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने के आरोप पर चुप्पी साधे रहे. उनकी यह चुप्पी समर्थकों भी हैरान करती रही. बाद में उन्होंने कहा कि बिना सबूत लगाए गए आरोप पर जवाब देना वह जरूरी नहीं समझते.

आप नेता संजय सिंह ने कहा, “अनर्गल आरोपों पर बयान देने का कोई लाभ नहीं है. दिल्ली सरकार आम आदमी के हित के लिए दिन-रात एक किए हुए है. आपको क्या लगता है कि इस तरह के आरोपों से हम डर जाएंगे? जिसे जो बोलना है बोले, हम काम करते रहेंगे.” पार्टी के कुछ सदस्यों के बागी सुर भी परेशानी का सबब बने रहे. कपिल मिश्रा की बर्खास्तगी के बाद रह-रहकर कुमार विश्वास के साथ अरविंद केजरीवाल का मनमुटाव सुर्खियों में रहा. लाभ के पद मामले में फंसे पार्टी के 21 विधायकों की विधानसभा सदस्यता पर चुनाव आयोग में लटकी तलवार पार्टी के लिए गले की हड्डी बनी हुई है.

हालांकि, इस बीच पार्टी ने सरकारी स्कूलों के संचालन में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अच्छा काम किया. साल के अंत में गुजरात चुनाव भी पार्टी के लिए निराशा और हताशा भरा रहा. इस राज्य में भी पार्टी बुरी तरह से हारी. पंजाब में जनाधार को खिसकने से रोकने के लिए पार्टी ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को राज्य का प्रभारी नियुक्त किया है.

कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का कमल पकड़ चुके अरविंद सिंह लवली कहते हैं, “केजरीवाल भ्रम और झूठ के सहारे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे. उनकी सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह खुद को ईमानदार और बाकी को भ्रष्ट समझते हैं. अब उनका यह भ्रम और यूं कहें कि चाल जनता को समझ आ रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव होने दीजिए, उनका रहा सहा भ्रम भी टूट जाएगा.”

यह तो स्पष्ट है कि यह साल पार्टी के लिए खासा उतार-चढ़ाव भरा रहा और आगे आने वाला समय भी पार्टी के लिए कांटों भरा रहने वाला है. दिल्ली की सत्ता के गलियारों से शुरू हुआ सफर कई राज्यों में हार के बाद दिल्ली की राजनीति तक ही सिमटता दिख रहा है.

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