नई दिल्ली: देश के 150 अरब डॉलर के सूचना प्रौद्योगिकी आईटी उद्योग के लिए यह साल अनेक चुनौतियों से भरा रहा जिसमें वीजा जांच कड़ी किया जाना व ग्राहक खर्च में कमी शामिल है. हालांकि ऑटोमेशन व कृत्रिम समझ एआई जैसी नयी प्रौद्योगिकियों के सामने आने से अगला साल 2018 काफी उम्मीदों से भरा है. सॉफ्टवेयर कंपनियों के संगठन नास्कॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा, ‘2017 का साल बाकी वर्षों जैसा नहीं रहा. राजनीतिक व आर्थिक कारकों ने इसकी जटिलता को बढ़ाया. वीजा जांच कड़ी हुई तो ग्राहकों ने आईटी व्यय को रोक लिया.’
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी वादों को पूरा करते हुए वीजा नियमों को कड़ा करने के लिए कई कदम उठाए. सात मुस्लिम बहुल देशों के खिलाफ आव्रजन प्रतिबंधों के विवादास्पद फैसले का अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों गूगल व फेसबुक ने विरोध किया और कहा कि इस तरह के कदमों से प्रतिभाओं को अमेरिका में आकर्षित करने में दिक्कत होगी.
इसके साथ ही अमेरिका ने एच1बी वीजा श्रेणी की ‘प्रीमियम प्रोसेसिंग’ को रोक दिया. भारत की आईटी निर्यात आय में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है. अमेरिका ने ‘अमेरिकी खरीदो, अमेरिकियों को काम दो’ को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए. अमेरिकी प्रशासन अब एच1बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों को कामकाजी अधिकार देने संबंधी नियम को समाप्त करने के लिए कदम उठा रहा है. इसका असर हजारों भारतीय कर्मचारियों व परिवारों पर पड़ सकता है.
साइंट के संस्थापक बीवीआर मोहन रेड्डी ने कहा, ‘नयी नियामकीय चुनौतियां ट्रंप प्रशासन की नयी वीजा प्रणाली तथा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया व सिंगापुर जैसे देशों में वीजा नियमों में बदलाव के रूप में आ रही हैं.. इससे लोगों की आवाजाही कम होगी.’ ट्रंप प्रशासन की एच1बी वीजा कार्यक्रम में आमूल चूल बदलाव की योजनाओं ने इस साल भारतीय आईटी कंपनियों की चिंताएं बढ़ाईं तो अनेक कंपनियों ने अमेरिका में स्थानीय नियुक्तियां बढ़ाने पर जोर दिया ताकि अपने ग्राहकों केा सेवाएं जारी रख सकें. उदाहरण के लिए इन्फोसिस ने 10,000 अमेरिकियों को रोजगार देने व अमेरिका में चार हब स्थापित करने की घोषणा की. टीसीएस, विप्रो व अन्य ने भी अमेरिका में अपनी स्थानीय उपस्थिति को मजबूत बनाया है.