छोटे कारोबारियों को फायदा दिलाने के लिए शुरू की गई जीएसटी कंपोजिशन स्कीम का दुरुपयोग होने की आशंका पैदा हो गई है. आशंका जताई जा रही है कि कारोबारी अपना सही टर्नओवर नहीं दिखा रहे हैं, जिसकी वजह से सरकार को कम टैक्स मिल रहा है.
जुलाई से सितंबर के बीच 10 लाख कंपनियों ने कंपोजिशन स्कीम ली थी. इस स्कीम के तहत कारोबारियों को सिर्फ अपनी कंपनी की टर्नओवर डिटेल साझा करनी होती है. इसके तहत टैक्स एक तय रेट पर चुकाया जाता है. इन 10 लाख में से 25 दिसंबर तक 6 लाख लोगों ने रिटर्न फाइल किया है.
तीन महीनों के दौरान कुल रकम 251 करोड़ रुपये रही है. इससे सालाना टर्नओवर 8 लाख रुपये तक होता है, जबकि सरकार ने इस स्कीम के तहत औसत टर्नओवर 2 लाख रुपये रहने का अनुमान लगाया था. औसत अनुमान और रिटर्न के तौर पर सामने आ रहे टर्नओवर के आधार पर अधिकारी चिंता जता रहे हैं कि कहीं इस स्कीम के नाम पर सरकार को राजस्व का नुकसान तो नहीं उठाना पड़ रहा.
टाइम्स ऑफ इंडिया से एक अधिकारी ने कहा कि हम योजना बना रहे थे कि इस स्कीम के तहत अधिकतम सीमा 1 करोड़ से ज्यादा बढ़ाई जाए, लेकिन औसत डिक्लेरेशन दिखाता है कि इसमें 8 लाख रुपये सालाना टर्नओवर है. ऐसे में हम ये सोच रहे हैं कि क्या अधिकतम सीमा बढ़ाने की बजरूरत है भी कि नहीं. बता दें कि नवंर में जीएसटी परिषद ने कंपोजिशन स्कीम के लिए अधिकतम सीमा 1.5 करोड़ रुपये कर दी है.
इसकी वजह से वित्त मंत्रालय ने आयकर के तहत अनुमानित कर भरने के लिए तय की गई सीमा की जांच करने का भी मन बना लिया है. इसके तहत सालाना आय की सीमा बढ़ाकर 2 करोड़ कर दी गई थी. आंकड़ों को देखें तो यहां भी सालाना औसत आय 18 लाख रुपये पर आ रही है. ऐसे में अधिकारी यहां भी आशंका जता रहे हैं कि स्कीम का फायदा लेने वाले सही रिपोर्टिंग नहीं कर रहे.