नई दिल्ली : भारत की आर्थिक वृद्धि दर में आने वाले समय में तेजी की उम्मीद है और इसके 2019-20 में सुधरकर 7.6 फीसदी रहने का अनुमान है. इसका कारण माल एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा नोटबंदी के क्रियान्वयन के कारण जो समस्या उत्पन्न हुई थी, उससे प्रमुख क्षेत्रों का अब लगभग उबरना शुरू होना है. एचएसबीसी की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी के अनुसार 2018-19 में जीडीपी वृद्धि दर 2017-18 के 6.5 फीसदी वृद्धि दर के मुकाबले बढ़कर 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
एचएसबीसी ने एक शोध रिपोर्ट में कहा, ‘भारत की वृद्धि दर की कहानी के दो पहलू हैं. पहला इसमें नरमी तथा अल्पकाल में पुनरूद्धार…. इसका कारण जीएसटी और नोटबंदी के क्रियान्वयन के कारण उत्पन्न बाधाओं से प्रमुख क्षेत्रों का उबरना है.’ रिपोर्ट के अनुसार उसके बाद मध्यम अवधि 2019-20 और उसके बाद आर्थिक वृद्धि की बेहतर संभावना. हाल में जो संरचनात्मक सुधार हुए हैं, उसका लाभ उस समय तक मिलने की उम्मीद है. एचएसबीसी को उम्मीद है कि देश की वृद्धि दर 2017-18 में 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2018-19 में 7.0 प्रतिशत तथा 2019-20 में 7.6 प्रतिशत रहने की संभावना है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के धीरे-धीरे आगे बढ़ने की उम्मीद है. इससे कीमत दबाव में फिर से उछाल पर अंकुश लगेगा तथा रिजर्व बैंक कुछ समय के लिये नीतिगत दरों को यथावत रख सकता है. एचएसबीसी के अनुसार एक बार अस्थायी कारकों का प्रभाव खत्म होता है, तब मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के 4 प्रतिशत के लक्ष्य पर स्थिर हो जाएगी.
रिपोर्ट के मुताबिक हमारा अनुमान है, ‘वित्त वर्ष 2017-18 में मुद्रास्फीति औसतन 3.4 प्रतिशत (मार्च में 4.3 प्रतिशत) रहेगी. इसके आधार पर हमारा अनुमान है कि रिजर्व बैंक प्रमुख नीतिगत दर रेपो दर को बरकरार रखेगा. मुद्रास्फीति के ऊपर जाने के जोखिम के साथ केंद्रीय बैंक का नीतिगत दर में कटौती का दौर अब समाप्त होने वाला है.’
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने अपनी पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा रेपो दर 6 प्रतिशत तथा रिवर्स रेपो 5.75 प्रतिशत पर बरकरार रखी है. वहीं मुद्रास्फीति 2017-18 में 4.3 से 4.7 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है.