नई दिल्ली: भारत सूचनाओं व आंकड़ों के ‘ऊंचे पहाड़’ पर बैठा है और विशेषज्ञों के अनुसार इन सूचनाओं का बेहतर इस्तेमाल ही अब उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. विशेषज्ञों का कहना है कि आधार कार्ड, बैंक खाते, मोबाइल फोन कनेक्शन जैसे विभिन्न प्रकार के रिकॉर्ड व जानकारियों के डिजिटलीकरण से भारत में आंकड़ों का बड़ा भंडार (बिग डेटा) बन गया है और अब सवाल यह है कि इसका नागरिकों को बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराने में सही व प्रभावी इस्तेमाल कैसे किया जाए. जानकारों का कहना है कि देश ‘अवसरों के इस महासागर‘ के जरिये अर्थव्यवस्था को बल दे सकता है और नागरिकों को बेहतर सेवाएं सुविधाएं दे सकता है.
दरअसल आधार कार्ड, पासपोर्ट व पहचान पत्र बनाने तथा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) जैसे फायदे उपलब्ध कराने की प्रक्रिया में भारत ने संभवत: दुनिया का सबसे बड़ा डेटा भंडार सृजित कर लिया है. यह भंडार लगातार बढ़ रहा है. अब चुनौती यह है कि इन आंकड़ों का बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जाए. मैकेंजी एंड कंपनी में सीनियर पार्टनर अलोक क्षीरसागर ने कहा कि भारतीय संदर्भ में अब समस्या डेटा सृजन की नहीं बल्कि इसके प्रभावी इस्तेमाल की है.
नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट (एनआईएसजी) व मैकेंजी एंड कंपनी ने इसी सप्ताह यहां शासन में बिग डेटा इस्तेमाल व भूमिका पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें केंद्र व राज्य सरकारों के आला अधिकारी, विभिन्न बैंकों व पेटीएम जैसे नये मंचों के प्रतिनिधि शामिल हुए और चर्चा की. कार्यशाला में इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में सचिव अजय प्रकाश साहनी ने कहा, ‘बिग डेटा अवसरों का बड़ा क्षेत्र है तथा आधार जैसी पहल के बाद ये अवसर और बड़े हुए हैं.’ उन्होंने कहा कि भारत इस डेटा का इस्तेमाल ग्राहकों या उपयोक्ताओं का अनुभव सुधारने, प्रभावी राजकाज संचालन करने तथा व्यापार व अर्थव्यवस्था को बल देने के लिए कर सकता है. हालांकि, इस क्षेत्र में दो बड़ी चुनौतियां कौशल विकास तथा स्टार्टअप व नवोन्मेष को बढ़ावा देना है.
विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में आंकड़े किस तेजी से सृजित हो रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में आज जितनी डिजिटल जानकारी उपलब्ध है उसका 90 प्रतिशत हिस्सा बीते दो साल में ही सृजित हुआ है. इसकी एक वजह कंप्यूटर की बढ़ती प्रसंस्करण क्षमता भी है जो कि 2010 से 2016 के दौरान 40 प्रतिशत बढ़ी है.