चीन की कंपनी हिकविजन के सीसीटीवी कैमरे दिल्ली में लगाए जाने पर आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह ने कहा कि बीईएल के कैमरे लगे हैं, मेट्रो में लगे हैं, बैन है तो ये यहां क्यों लगे हैं. नियमों का पालन किया गया है.
नई दिल्ली: दिल्ली की केजरीवाल सरकार चीन सरकार की बदनाम कंपनी हिकविजन के सीसीटीवी कैमरे लगाने जा रही है. ये कंपनी अमेरिका और ब्रिटेन में बैन है. एबीपी न्यूज़ के पास वो दस्तावेज हैं जिनमें लिखा है कि दिल्ली में 1.5 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने का ठेका सरकारी कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दिया गया है.
दिल्ली सरकार के दस्तावेज में लिखा है कि दिल्ली में 1.5 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने का ठेका सरकारी कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दिया गया है. तो अब सवाल ये है कि दिल्ली में अगर हिकविजन कंपनी के कैमरे लगते हैं उसका चीन की सरकार, चीन की आर्मी से संबंध क्या है?
चीन की सरकार जिस हिकविजन कंपनी की मालिक है उसी चीन सरकार वाली कंपनी के CCTV कैमरे दिल्ली में लगाए जाने हैं. हिकविजन की 2018 की सालाना रिपोर्ट के पन्ने खंगाले गए तो पाया कि कंपनी में कंट्रोलिंग शेयर होल्डर यानी असली मालिक चीन की सरकार ही है.
तो क्या इसका मतलब ये है कि चीन की सरकार से जुड़ी कंपनी का सीसीटीवी कैमरा दिल्ली में लगने से देश की राजधानी पर एक खतरा हो सकता है? इसके बारे में साइबर एक्सपर्ट आदित्य जैन ने कहा कि चीन के कैमरे भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.
दावा है चीन अपने देश में खुद 20 करोड़ से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगा चुका है. चीन में ऐसा वीडियो सर्विलांस नेटवर्क बन चुका है, जहां कोई भी कहीं भी जाए, कहीं से भी आए वो चीन सरकार के सीसीटीवी कैमरों की नजर में रहता है. चीन की सरकार ने इनमें ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले कैमरे भी लगाए हैं, जो आदमी का चेहरा डिटेक्ट करके उससे जुड़ी हर जानकारी पा सकती है.
आप की सफाई
चीन के कैमरे दिल्ली में लगाए जाने पर आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह ने कहा कि बीईएल के कैमरे लगे हैं, मेट्रो में लगे हैं, बैन है तो ये यहां क्यों लगा है. हमने कम दाम दिए हैं और नियमों का पालन किया है.
अमेरिका में चीन की सरकार के अधीन आने वाली कंपनी हिकविजन के सीसीटीवी कैमरे आने का सिर्फ विरोध नहीं हुआ है. बल्कि अमेरिका में कानून बनाकर हिकविजन से वीडियो सर्विलेंस सर्विस लेने पर पाबंदी लगा दी गई है. हिकविजन के कैमरों पर ब्रिटेन की संसद में सांसद करीन ली भी सवाल उठा चुकी हैं. ऑस्ट्रेलिया ने सभी सैन्य इमारतों से चीन के हिकविजन कैमरे हटाने का आदेश दिया है. फ्रांस भी चीनी कंपनी हिकविजन के कैमरों से सुरक्षा खतरे की जांच कर रहा है.
आरोप है कि चीन की कंपनी के जो CCTV कैमरे भारत में लग रहे हैं चीन की कंपनी के उन कैमरों में बैक डोर एंट्री का सिस्टम है. यानी सीसीटीवी कैमरों की तस्वीरें इन कैमरों को बनाने वाली कंपनी हासिल कर सकती है.
एबीपी न्यूज़ संवाददाता इंद्रजीत राय ने दिल्ली में हिकविजन के कैमरे लगाने का ठेका पाई सरकारी कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को ई-मेल लिखकर पूछा कि आखिर बीईएल ने संदेह वाली चीन की कंपनी के कैमरे ही क्यों चुने हैं? इसी तरह चीन की कंपनी हिकविजन को भी ई-मेल करके पक्ष जानना चाहा. लेकिन अभी तक हमारे पास बीईएल और हिकविजन की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.
रेलवे पर भी हिकविजन की नजर
रेलवे भी हिकविजन को कैमरे लगाने का टेंडर दे सकता है. जबकि नीति आयोग की बैठक में चीनी कंपनी के कैमरों पर गंभीर चिंता जताई गई है. नीति आयोग की बैठक में हुई बातों की रिपोर्ट के पन्नों में इसका सबूत है. जहां टेमा यानी टेक्निकल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TEMA) के प्रतिनिधियों ने खुद कहा कि अमेरिका में हिकविजन कंपनी के कैमरे बैन हैं.
इसके बाद रेलवे बोर्ड को नीति आयोग ने सिफारिश भेजी. अपनी सिफारिश में लिखा कि TEMA की सिफारिशों पर ध्यान देने की जरूरत है. ऐसी कंपनी के सीसीटीवी कैमरे लगाने से बचें जिससे जासूसी की बात की आशंका हो.
2018 की रेलवे टेंडर की शर्तों में साफ लिखा है कि यदि किसी कंपनी पर जासूसी या बैक डोर इन्ट्री के आरोप लगे हों उन्हें रेलवे में सीसीटीवी का काम नहीं दिया जा सकता. ये टेंडर शर्तें 2018 की है. लेकिन 2019 में इस नियम को हटा दिया गया. जिसके बाद अब हिकविजन रेलवे में कैमरे की सप्लाई का काम ले सकता है.
अब सवाल उठता है कि क्या सरकारी विभाग सरकार की ही नहीं सुनते. जब नीति आयोग खुद इस कंपनी पर सवाल उठा चुका है, दुनिया के कई देश इसे बैन कर चुके हैं तो आखिर दिल्ली में डेढ़ लाख कैमरे चीन सरकार की मालिकाना हक वाली कंपनी के कैसे लग रहे हैं और रेलवे ने नियम में बदलाव क्यों किया? जिससे चीन की इस कंपनी को टेन्डर में फायदा मिल सके.
रेलवे के अफसरों नें इस नियम को किस मंशा से हटाया ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट नें इस टेंडर से जुड़ी सारी प्रक्रिया पर राष्ट्रीय हित के तर्क के साथ अगली सुनवाई तक स्टे लगा दिया है.
रेलवे और दिल्ली सरकार से जुड़े टेक्निकल लोगों नें पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर बताया कि चीन की ये कंपनियां भारतीय और दुनिया की दूसरी कंपनियों से आधे दाम पर सीसीटीवी सप्लाई करती हैं.