मेरे शिव और काशी की बात ही कुछ और है। मेरी काशी यूं ही शिव की नगरी नहीं बन गई। बस, भोले बाबा को भा गई और मांग ली विष्णुजी से अपने रहने के लिए। अपने लिए कभी कुछ न चाहने वाले मेरे भोले बाबा की निराली लीला है- काशी। दुनिया भर के लिए मोक्ष तीर्थ। इसीलिए तो काशी के कंकर-कंकर में शंकर हैं। यहां आकर तो बाबा को भी ब्रह्म हत्या के शाप से मुक्ति मिली थी। समस्त ब्रह्मांड को मुक्ति दिलाने वाले मेरे बाबा की मुक्ति। उनकी लीला वही जाने। मुझे तो सिर्फ उनकी भक्ति से मतलब है। भले ही काशी शिव के त्रिशूल पर विराजती हो, मेरे लिए तो वह संगीत और नृत्य के आदि गुरु हैं। मेरे प्रिय हैं, मेरे सखा हैं, मेरे सब कुछ हैं। शिव से यह प्रीति मुझे राम से भी अनायास जोड़ देती है। मुझे लगता है कि शिव और राम दो नहीं, एक हैं। वे अलग-अलग नहीं, संयुक्त हैं। एक-दूसरे में समाए हुए हैं। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इन दोनों में कौन भक्त है और कौन भगवान है। इसलिए अक्सर मैं तुलसीदास के दोहे को गुनगुनाता हूं- छल तजि विश्वनाथ पद नेहू, राम भगति कर लक्षण एहू। शिव के समान मुझे दूसरा कोई प्रिय नहीं है। लोग कहते भी हैं कि काशी में शिव हैं और शिव में काशी समाया हुआ है। और तो और, काशी की सेवा करने वाला हर कोई शिव का ही रूप माना जाता है।
हम कलाकार मां सरस्वती के उपासक होते हैं। हमारे संगीत के आधार ग्रंथों में एक ‘शिव सूत्र’ है। इसमें चौदह सूत्रों का वर्णन है, जिसमें स्वर, लय और ताल के बारे में बताया गया है। विभिन्न लय जैसे- चतुश्र, तिश्र, मिश्र, खंड सबके रचनाकार भगवान शिव हैं। कहते हैं रचि महेश निज मानस राखा। भगवान शिव जब डमरू बजाते हैं, तब पहला स्वर ‘अ’ का निकलता है। जब हम गाने की शुरुआत करते हैं, तब ‘आ’ की ध्वनि निकालते हैं। इसके जरिए हम माता सरस्वती का आह्वान करते हैं। मुझे लगता है कि भगवान शिव और देवी मां तो हमारे दिल में हर पल निवास करते हैं। भगवन शंकर के मुख से निकले हुए शब्द को गोस्वामी तुलसीदास ने कुछ इस तरह बखान किया है, हरि व्यापत सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रगट होत भगवाना।
भारतीय संगीत अगाध सागर है। इसके जनक भी भगवान शंकर हैं। हमारे संगीत के सात स्वर सृष्टि के पर्याय हैं। सा-साकार ब्रह्म, रे-ऋषि, ग-गंधर्व, म-महीपाल यानी इंद्र, पंचम-प्रजा और ध-धर्म यही सात स्वर हैं। पंच तत्व के प्रतीक सात सुर का पहला सुर ‘सा’ में ही पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। इसकी आराधना करके ही आपको निराकार ब्रह्म, यानी मोक्ष प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। काशी में लोग मोक्ष के लिए आते हैं, यहां वास करते हैं। लोगों की इच्छा होती है कि वे अंतिम सांस काशी में लें। काशी में जीवन व मृत्यु, दोनों उत्सव का रूप हैं।
रामचरितमानस में भगवान शिव कहते हैं- उमा कहऊं मैं अनुभव अपना। यह संगीत भी अनुभव की चीज है। तभी तो हमारे यहां शास्त्रीय संगीत में पहला राग यमन है। इसे शास्त्र में कल्याण कहा जाता है, जो शिव के स्वरूप हैं, जो कल्याणकारी हमारे पिता हैं। शास्त्रीय संगीत में राग कल्याण अथवा यमन को शिव का रूप माना जाता है। इसमें लगभग सातसें सुरों के साथ तीव्र मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है, जबकि राग भैरवी को माता पार्वती का प्रतिरूप माना जाता है। प्रात:कालीन राग भैरवी में कोमल मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। राग कल्याण और राग भैरवी के एक-एक सुर के मेल से पुत्र राग भैरव का जन्म हुआ है। हमारे संगीत के सभी रागों के जनक और जननी यही दो राग हैं।
देवी की शक्ति के कई रूप हैं। पहली शक्ति सीता हैं, तब राम हैं। इसी तरह देवी पार्वती हैं, तब भगवान शंकर हैं। पहले लक्ष्मी हैं, फिर नारायण हैं। हमारा शरीर लालटेन की तरह है और उसकी रोशनी हमारी शक्ति की तरह है। शक्ति के बिना ब्रह्म अथवा शरीर नहीं है और ब्रह्म के बिना शक्ति की परिकल्पना नहीं की जा सकती। मनुष्य के शरीर में यदि शक्ति न हो, तो वह किसी काम का नहीं रह जाता है। शक्तिहीन इंसान का कोई अस्तित्व नहीं है। शक्ति को रहने के लिए सिर्फ लालटेन या बल्ब या हमारा शरीर चाहिए। उसके बिना हम इस जगत की कल्पना भी नहीं कर सकते। कहा जाता है कि कल्याणकारी शिव शक्ति के बिना शव हैं, यानी शक्तिहीन हैं।
पुरानी कहावत मुझे याद आती है, चना-चबेनी गंगा जल जो पुरवैं करतार, काशी कभी न छोड़िहें विश्वनाथ दरबार। बचपन में पूर्वजों से सुनी यह बात मेरे रोम-रोम में बस गई है। मैं देश-विदेश जाता हूं, पर पैसे कमाने के लिए काशी को नहीं छोड़ सकता। यहां शिव हैं, शक्ति हैं, गंगा हैं। यहीं भुक्ति और मुक्ति है। शिव की शरणागति के अलावा अब कुछ भाता नहीं। भावी मेंट सकें शिव-शंकर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भगवान शंकर ने संकट में फंसे मार्कंडेय ऋषि के भाग्य को बदल दिया। वास्तव में, शिव तो औघड़दानी हैं।
काशी भगवान विश्वनाथ की नगरी है। यह द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक है। काशी नगरी की महिमा अपार है, क्योंकि यहां शिव का दरबार है। यहां की धरती पर भगवान बुद्ध ने अपने पांच शिष्यों को दीक्षित किया। यहां गंगा के साथ भगवान भैरव, गणेश, अन्नपूर्णा विराजित हैं। काशी की बनारसी साड़ी, मगही पान, मलाई-मगदल मिठाई की बड़ाई पूरे विश्व में है। पंडे गंगा के घाट पर छतरी सजाए, चंदन लगाए बैठते हैं। यह काशी की शोभा है। यहां सब शिव का ध्यान करते हैं और शिव से प्यार करते हैं। शिव भक्तों का कल्याण शंकराचार्य के वचनों में है, जो जीवन का सार है। शंकर का सहारा है।