लाल कप्तान फिल्म रिव्यू (Laal Kaptaan Review), हटकर कहानी के साथ पर्दे पर न्याय नहीं कर पाए मेकर्स.
नई दिल्ली. ‘लाल कप्तान’ (Laal Kaptaan) छल और वीरता के ईर्द-गिर्द गढ़ी गई एक महत्वाकांक्षी कहानी है. ये फिल्म इतिहास के उस दौर कहानी भी दिखाती है जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपने पांव पसार रही थी. सहयोगी दलों को खरीद रही थी और मुगलों, रोहिलों, मराठोंजैसे दुश्मनों को रौंद रही थी. उसका मदसद था पूरे भारत पर कब्जा करना. ये वाकई एक शानदार कहानी है, लेकिन जैसे ही निर्देशक नवदीप सिंह और दीपक वेंकटेश इस कहानी को पर्दे पर उतारते हैं, ये कएक भटकी हुई फिल्म बन जाती है.
फिल्म के प्लॉट की बात करें तो इसमें अक्टूबर 1764 में हुए बक्सर का युद्ध के बाद दर्शकों को एक पिशाच जैसे शख्स से मिलवाया जाता है. जिसका नाम गोसाई है, वो एक नागा साधू है, जो दुश्मनों का सामना करता है और उसे खत्म करते ही दम लेता है. गोसाई, लोगों को मारने के लिए सुपारी लेता है. इस गोसाई की कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब वो एक पठान सिपहसालार रहमत खान (मानव विज) का पीछा करते हुए बुंदेलखंड पार करते हुए पहुंचता है. सिपहसालार रहमत के साथ उनका एक वफादार जनरल (आमिर बशीर), बेगम (सिमोन सिंह), एक बच्चा और एक विधवा उपस्त्री (जोया हुसैन) है.
नवदीप सिंह अपने डार्क और अजीब तरीके से दिलचस्प किरदारों के लिए पहचाने जाते हैं. वहीं इस फिल्म एक अलग ही लेवल पर ले गए हैं मैक्सिमा बासु के कॉस्ट्यूम, ये कॉस्ट्यूम काऊवॉय और पायरेट्स के मिक्सचर लगते हैं. वहीं शंकर रामन की सिनेमैटोग्राफी बंजर जमीनों को भी खूबसूरती से दिखाती है.
सैफ अली खान, जो ‘ओमकारा’ में लंगड़ा त्यागी जैसा शानदार किरदार निभा चुके हैं. इसके साथ ही सैफ ‘गो गोवा गोन’ में रशियन अवतार में भी नजर आ चुके हैं. इन दो अलग तरह के किरदारों के अलावा उन्होंने एक और डार्क और हटके किरदार निभा लिया है. लेकिन इस बार सैफ की परफॉर्मेंस खराब स्क्रिप्ट की वजह से बेकार हो जाती है.
वहीं सपोर्टिंग किरदार जो शानदार काम कर सकते थे, उन्हें सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया है. हालांकि मराठा सरदार के किरदार में मदन देवधर और खोजी के किरदार में दीपक डोबरियाल की कॉमेडी लोगों का हंसाती है लेकिन इनके किरदारों को भी स्क्रिप्ट में सही जगह नहीं मिली है. मानव विज और आमिर बशीर, फिल्म में विरोधियों का किरदार निभाने वाले अभिनेताओं के साथ भी न्याय नहीं हुआ है. वहीं फिल्म में जो महिला किरदार हैं उन्हें भी पर्दे पर बहुत कम वक्त दिया गया है.
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