दीपोत्सव तो ‘अयोध्या’ का प्रतिनिधि पर्व है। भगवान ‘राम’ से जुड़कर इस पर्व की ऐतिहासिकता भी स्वयं सिद्ध है। फिर भी यह पर्व 2017 के पहले तक परम्परा के निर्वहन तक ही सीमित रहा। वर्ष 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार की ताजपोशी के बाद से प्रतीकात्मक दीपोत्सव पूरी उत्सवधर्मिता के रंग से सराबोर हो गया है। यद्यपि कि बीते दो वर्षों से यह उत्सव सरकारी आयोजनों के सदृश्य बनकर रह गया था। पहली बार प्रदेश सरकार ने इस उत्सव में जन सहभागिता पर जोर देकर जो अभियान छेड़ा वह असरकारी दिखने लगा है।
दीपोत्सव- 2019 इसलिए खास बन गया है चूंकि रामजन्मभूमि के ऐतिहासिक विवाद पर सुप्रीम फैसला आना भी तय हो चुका है। इस फैसले की प्रतीक्षा नौ सालों से की जा रही है। 30 सितम्बर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ का फैसला जरूर आया लेकिन फैसले में प्रश्नगत जमीन के बंटवारे ने विवाद को सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा दिया। यहां भी लंबे समय तक फाइलों में कैद विवाद की आखिरकार सुनवाई शुरू हुई और 40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित हो चुका है। यह भी तय है कि फैसला 17 नवम्बर के पहले कभी भी आ सकता है।
अब जब फैसले की घड़ी आ गई है तो अवधवासियों को प्रभु राम के वनवास के साथ ‘अयोध्या’ के भी वनवास के खत्म होने की उम्मीद जगी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार अपने वक्तव्यों में सांकेतिक भाषा में इस फैसले का जिक्र करते हुए रामभक्तों को दिलासा देते आ रहे हैं। मालूम हो कि मुख्यमंत्री समेत गोरक्ष पीठ की तीन पीढ़ियां राम मंदिर आन्दोलन से जुड़ी रही हैं। 22/23 दिसम्बर 1949 में रामलला के प्राकट्य के पहले से गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ जो कि मुख्यमंत्री के दादा गुरु थे जुड़े थे। इसके बाद उनके गुरु महंत अवेद्यनाथ की ही अध्यक्षता में 1983-84 में श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन समिति का गठन कर देशव्यापी आन्दोलन की शुरुआत की गई थी।
इसी आन्दोलन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान दिलाई। इसके चलते मुख्यमंत्री का अयोध्या से सहज जुड़ाव रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने के बाद से उन्होंने बराबर अपने लगाव को प्रदर्शित भी किया। उसी शृंखला में दीपोत्सव का आयोजन भी मुख्यमंत्री की आस्था के प्रकटीकरण का एक जरिया बना है। अब इस दीपोत्सव के प्रति जनरुझान ने उत्सवधर्मिता का वास्तविक रंग भरना शुरू कर दिया है। इसी के चलते मंदिर-मंदिर व घर-घर दीपमय बनाने की योजना को मूर्त देने की घड़ी आ गई है जब चहुंओर दोहरे ‘वनवास’ की मुक्ति का एहसास मुखर होता दिखाई देगा।