नई दिल्ली : क्रिकेट की दुनिया में आज भले ही टीम इंडिया के नाम का डंका बज रहा हो, लेकिन साठ और सत्तर के दशक में ऐसा नहीं था. उस समय भारत की गिनती कमजोर टीम के रूप में होती थी. तब टीम को इक्का दुक्का जीतें मिलती थीं, वह भी लंबे समय बाद. और बात जब ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज जैसी मजबूत टीमों की हो तो और भी मुश्किल. ऐसा ही एक मैच हुआ था 1964 में मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में. 10 से 15 अक्टूबर के बीच खेले गए इस रोमांचक टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया को भारत ने 2 विकेट से हराया था. इस तरह भारत ने नवाब पटौदी के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया पर अपनी दूसरी जीत दर्ज की थी.
इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 320 रन बनाए. इसके जवाब में भारतीय टीम ने भी शानदार बल्लेबाजी का प्रदर्शन किया. मैच में टीम ने पहली पारी में 341 रन बना दिए. दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया की टीम 274 रन ही बना सकी. लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया की हालत पांचवें दिन यानी 15 अक्टूबर को उस समय खराब हो गई, जब उसने 122 रन पर 6 विकेट गंवा दिए.
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भारत को जीत के लिए अब भी 132 रन चाहिए थे और उसके पास सिर्फ चार पुछल्ले बल्लेबाज बचे थे. क्रीज पर खुद कप्तान नवाब पटौदी मौजूद थे, लेकिन बाकी के सभी पुछल्ले बल्लेबाज थे. ऐसे में जीत करीब करीब असंभव थी. इस समय कप्तान पटौदी और विजय हजारे ने सातवें विकेट के लिए 93 रनों की भागीदारी कर ऑस्ट्रेलिया के अरमानों पर पानी फेर दिया.
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इन दोनों ने टीम के स्कोर को 200 के पार पहुंचाया. इनके बाद बचा हुआ काम चंदू बोर्डे ने पूरा कर दिया. बोर्डे ने इस मैच में नौवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए नाबाद 30 रन बनाकर अपनी टीम को ऑस्ट्रेलिया पर दूसरी ऐतिहासिक जीत दिला दी.