होमी अदजानिया की यह फिल्म दो साल पहले आई साकेत चौधरी की ‘हिंदी मीडियम’ की सीक्वल है। दोनों फिल्मों में एक कॉमन बात है और वो है बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए पिता की ओर से की जाने वाली जद्दोजहद। पिछली बार भी सभी कलाकारों ने जोरदार परफॉर्मेंस दी थी। इस बार भी वह चीज देखने को मिल रही है, और पूरी फिल्म अच्छी अदायगी पर टिकी हुई है। खासकर इरफान खान और दीपक डोबरियाल की।
ऐसी है ‘अंग्रेजी मीडियम’ की कहानी
- फिल्म में इस बार उदयपुर में रहने वाले मिठाई दुकानदार चंपक बंसल की कहानी दिखाई गई है। जो विधुर है और सिंगल पेरेंट बनकर बेटी की देखभाल कर रहा है। उसकी बेटी तारिका बंसल है, जो 18 साल की है और जिसका एक ही सपना है लंदन जाकर पढ़ाई करना। इसके लिए वो दिन-रात एक करते हुए पढ़ाई करती है और स्कूल की तरफ से उसका चयन हो भी जाता है। लेकिन पिता चंपक और उनके भाई की वजह से उसका ये रास्ता बंद हो जाता है। दोनों अपनी खानदानी मिठाई की दुकान ‘घसीटाराम’ की फ्रेंचाइजी लेने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। कहानी आगे बढ़ने के साथ ही चंपक और उसकी बेटी के बीच भावनात्मक तकरार बढ़ने लगता है। दरअसल तारिका 18 की हो चुकी है और उसमें टीनएज का बागीपन आ जाता है। किसी तरह लंदन पहुंच जाने के बाद उसका बागीपन बढ़ने लगता है।
- कहानी के इस मोड़ पर होमी अदजानिया का फोकस किशोर उम्र के दौरान बच्चों में बढ़ते बगावती तेवर को दिखाने पर रहा। यहां तक कि लंदन में जो पुलिस इंस्पेक्टर चंपक और उसके भाई की मदद करती है, उसे भी इसी समस्या से जूझते हुए दिखाया। इन सबके बीच ग्लोबल गांव बन चुकी इस दुनिया में भाषाई चुनौतियों को दिखाने की कोशिश की गई, पर होमी उसमें विफल साबित हुए।
- फिल्म की पटकथा और संवाद भावेश मंडालिया, गौरव शुक्ला, विनय चव्वल और सारा बोदिनर ने लिखे। पर साफ लगा कि लेखकों की भीड़ हो जाने के चलते फिल्म में कन्फ्यूजन ज्यादा हो गया। इरफान और राधिका के अलावा दीपक डोबरियाल और कीकू शारदा के निभाए किरदारों को भी राजस्थानी बताया गया है। लेकिन राजस्थानी लहजे में बोले गए उनके डायलॉग कहीं-कहीं बोझिल लगे।
- बहरहाल, फिल्म की मजबूत कड़ी अदाकारों की परफॉर्मेंस हैं। चंपक बंसल के रोल में इरफान ने असरदार परफॉर्मेंस दी है। सिंगल पेरेंट की ख्वाहिशों और चुनौतियों को उन्होंने जीवंत किया है। पूरी उम्र अपना सब कुछ इकलौती बेटी पर न्यौछावर करने वाले शख्स की क्या पसंद-नापसंद हो सकती है, उसे इरफान ने अलग आयाम दिया है। जब तारिका के साथ उसकी जज्बाती जंग होती है तो वो भी फिल्म में जबरदस्त तरीके से उभर और निखर कर सामने आई है। इरफान ने अपनी परफॉर्मेंस से फिल्म के कमजोर लेखन में जान फूंक दी है।
- तारिका की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। जिस परिवेश में वो रही है, वहां औरतों को कुछ नहीं समझा जाता है। तारिका अपना हश्र वैसा नहीं चाहती, इसलिए हर हाल में वो लंदन कूच करना चाहती है। इसी चक्कर में उसे अपने पिता के त्याग भी नहीं दिखते। कहा जा सकता है कि तारिका के तौर पर राधिका मदान ने अपने करिअर की अबतक की बेस्ट परफॉर्मेंस दी है।
- चंपक के भाई की भूमिका में दिखे दीपक डोबरियाल फिल्म की दूसरी सबसे मजबूत कड़ी हैं। किरदार के गेटअप से लेकर उसके हाव-भाव, हंसी, गुस्सा, निराशा और साथ देने की प्रवृत्ति को उन्होंने बेहद खूबसूरती से निभाया है। डिंपल कपाड़िया और करीना कपूर खान का एक्सटेंडेड कैमियो है। दोनों ने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। दोनों बहुत अफर्टलेस लगी हैं। करीना की स्क्रीन प्रेजेंस सम्मोहित करती है। बाकी साथी कलाकारों में कीकू शारदा और रणवीर शौरी ने ठीक-ठाक काम किया है।
- फिल्म जादुई असर छोड़ पाती अगर कलाकारों की जोरदार अदायगी को सधी हुई लेखनी का साथ मिला होता। फिल्म में जिस स्केल पर ‘लीप आफ फेथ’ लिए गए हैं, उसने इसे क्वालिटी कॉमेडी बनने से रोक लिया, और तो और पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार की क्षमता भी जाया हुई। अलबत्ता एक फ्रेम में इतने मंझे हुए कलाकारों को देखना सुखद अनुभव तो है ही।
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