भगवान जगन्नाथ: 15 दिन तक-औषधीय गुणों से युक्त काढ़े का भोग

भगवान जगन्नाथ के पुजारी उनके स्वस्थ होने के लिये पूजा करते हैं और 15 दिन तक औषधीय गुणों से युक्त काढ़े का भोग लगाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी काढ़े से भगवान 15 दिन में पुन: स्वस्थ होकर आषाढ़ शुक्ल एकम पर भक्तों को दर्शन देते हैं.

उदयपुर. कोरोना संक्रमण (coronavirus infection) के इस दौर में क्वारंटाइन (Quarantine) शब्द सभी की जुबान पर है. लेकिन भगवान जगन्नाथ भी आज अस्वस्थ होकर 15 दिन के लिये भक्तों से दूर हो गए हैं, ऐसे में भक्तों में भगवान के भी क्वारंटाइन हो जाने की चर्चा है. दरअसल यह एक सदियों पुरानी परंपरा हैं जिसके तहत ही इस बार भी भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ने के बाद 15 दिन तक अब भक्तों को दर्शन नहीं देंगे. जैसे क्वारंटाइन हुए व्यक्ति को किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं होती है, उसी तरह आने वाले 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ के मंदिर (Jagannath Temple) के पट बंद रहेंगे.

औषधीय काढ़े से सवस्थ होते हैं भगवान
भगवान भक्तों को दर्शन नहीं देंगे और स्वास्थ्य लाभ लेंगे. सदियों पुरानी इस परंपरा के तहत ज्येष्ठ पुर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के साथ सुदर्शन चक्र का 108 घड़ों से स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद आमरस और खीर का भोग लगता हैं और फिर परंपरानुसार भगवान जगन्नाथ के मंदिर के द्वार बंद कर दिये जाते हैं. भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र के 15 दिन के लिये क्वारंटाइन होने पर अब भक्तों को उनके दर्शन नहीं होंगे. मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ के पुजारी उनके स्वस्थ होने के लिये पूजा करते हैं और 15 दिन तक औषधीय गुणों से युक्त काढ़े का भोग लगाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी काढ़े से भगवान 15 दिन में पुन: स्वस्थ होकर आषाढ़ शुक्ल एकम पर भक्तों को दर्शन देते हैं. अत्यधिक स्नान से बीमार हुए भगवान के दर्शन के लिये भक्त भी 15 दिनों तक इंतजार करते हैं. जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर उदयपुर में भी इसी परंपरा का निर्वहन शहर के सेक्टर-7 में स्थित जगन्नाथ मंदिर में किया जाता हैं. परंपरा के अनुसार अभिषेक के दौरान रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजित भगवान जगन्नाथ को 35 घड़ों से, बलराम जी को 33 घड़ों से, सुभद्रा जी को 22 घड़ों से और सुदर्शन चक्र को 18 घड़ों से स्नान कराया जाता है.

पुरानी मान्यता हैं कि पूर्णिमा के इस विशेष स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार होने के बाद गणेश का रूप धारण कर लेते हैं. भगवान के पट बंद होने के बाद भक्तों को उनके स्थान पर भगवान मदनमोहन जी के अलौकिक स्वरूप के दर्शन होते हैं. 15 दिनों के बाद भगवान जगन्नाथ पुन: स्वस्थ होकर भक्तों को अपने मनमोहक स्वरूप के दर्शन देते हैं. मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकम को भगवान के पुन: दर्शन होंगे और उन्हें 36 तहत के व्यंजनों का भोग लगाया जायेगा. उसके बाद भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भव्य रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. भगवान जगन्नाथ की इस विशाल रथ यात्रा का इंतजार जगन्नाथ पुरी से लेकर उदयपुर तक के भक्तों को बेसब्री से रहता है कि कब भगवान पुन: अपनी बीमारी से स्वस्थ हों और अपने रजत रथ में विराजित होकर नगर भ्रमण करते हुए उन्हें दर्शन दें.

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