शतावरी और अश्वगंधा खाने के क्या फायदे है और कब इसका सेवन करना चाहिए ?

शतवारी को शतावर, सहस्त्रवीर्या, शतमूल, सतमुल तथा वनस्पति भाषा में Asparagus racemosus / ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) भी कहते हैं।

वैद्य गण शतवारी की जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, ट्यूमर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में उपयोग करते हैं।

अमृतम कम्पनी द्वारा सबसे शुद्ध शतावर एवं अवश्गन्धा चूर्ण बनाती है इसकी क्वालिटी बहुत एच्हची होने के कारण कुछ महंगा जरूर है।

शतवारी एक जंगली बेल की जड़ है। यह शक्तिवर्धक ओषधि है। शिशुपन कराने वाली महिलाओं के स्तन में दूध की वृद्धि करता है। यह काम-उत्तेजक जड़ी है।

पुरुषों में वीर्य की बढ़ोतरी ओर गाढा करने के कारण इसे सहस्त्रवीर्या कहा जाता है।

भावप्रकाश निघण्टु व आयुर्वेदिक निघण्टु में शतावर को अमृतम ओषधि बताया है।

यह पौधा कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। अतिसक्रिय बच्चों और ऐसे लोगों को जिनका वजन कम है, उन्हें इसे अमृतम अश्वगंधा चूर्ण के साथ दूध से सुबह खाली पेट तीन महीने तक लेना चाहिए।

कुछ लोग इसका उपयोग त्वचा निखार के लिए कर रहे हैं यह गलत है। यह केवल खाने में उपयोगी व लाभप्रद है।

अमृतम शतावर चूर्ण एवं अमृतम अश्वगंधा चूर्ण मिश्री

युक्त दूध से लेने से शरीर में स्फूर्ति, ताकत आती है। साथ ही शरीर में खून की कमी दूर होती है।

मूत्राशय संबंधित समस्या भी दूर करती है।

पेशाब में जलन, खून आना आदि दिक्कतें दूर होती हैं। किताबों में इन दोनों के बारे में लगभग 50 पृष्ठों में लिखा है।

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