नई दिल्लीः दिल्ली-एनसीआर के लोगों को मंगलवार को एक बार फिर स्मॉग का सामना करना पड़ रहा है. स्मॉग की वजह से दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में धुंध छाई हुई है. लेकिन यह धुंध ठंड वाली नहीं है बल्कि यह प्रदूषण की वजह से छाई स्मॉग है. स्मॉग की वजह से विजिबिलिटी तो कम होती ही है लेकिन इसका ज्यादा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. स्मॉग की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्ग और बच्चों को होती है. अस्थमा के मरीजों के लिए ऐसे समय में बाहर निकलना जान जोखिम में डालने के बराबर होता है. एनसीआर में रहने वाले लोगों की जिंदगी खतरनाक वायु प्रदूषण की वजह से लगभग 6 साल कम हो चुकी है. अगर एनसीआर में डब्लूएचओ मानकों को लागू किया जा सका तो लोग 9 साल तक अधिक जीवित रहेंगे.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, जहरीली वायु के संपर्क में आने पर फेफड़े, रक्त, संवहनी तंत्र, मस्तिष्क, हृदय और यहां तक कि प्रजनन प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है. एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण पूरे देश में पांच लाख अकाल मौतें हो चुकी हैं. आईएमए के अध्यक्ष डॉ.केक अग्रवाल के मुताबिक दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एयूआई) पिछले कुछ दिनों में अत्यंत खराब से खतरनाक की श्रेणी में जा पहुंचा है. शहर के कई हिस्सों में, वायु प्रदूषण का स्तर 300 के खतरे के निशान को भी पार कर गया है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “दिल्ली में प्रदूषण के वर्तमान स्तर पर गर्भ में पल रहे शिशु भी प्रभावित हो सकते हैं. एक सामान्य वयस्क आराम करते समय प्रति मिनट छह लीटर वायु श्वास में लेता है, जबकि शारीरिक गतिविधि के दौरान यह मात्रा 20 लीटर बढ़ जाती है. वर्तमान में प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए, यह केवल फेफड़ों में विषाक्त पदार्थो की मात्रा में वृद्धि ही करेगा. यद्यपि हरेक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यायाम वाला स्थान सड़कों, निर्माण स्थलों और धुआं छोड़ने वाले उद्योगों से कम से कम 200 मीटर दूर हो. हालांकि, यह भी साफ हवा की गारंटी नहीं है. ”
लगातार जहरीली होती हवा
दरअसल जिस हवा में भारतीय सांस लेते हैं, वह दिन-प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है और एक नए अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिदिन औसतन दो लोग मारे जाते हैं. मेडिकल पत्रिका द लांसेट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन ‘मानवीय स्वास्थ्य पर तो भारी खतरा पैदा करता ही है’ साथ ही साथ यदि सही कदम उठाए जाएं तो वह ‘21वीं सदी का सबसे बड़ा वैश्विक स्वास्थ्य अवसर भी है.’ पत्रिका में छपे अध्ययन में कहा गया कि उत्तर भारत में छाया स्मॉग भारी नुकसान कर रहा है।. हर मिनट भारत में दो जिंदगियां वायु प्रदूषण के कारण चली जाती हैं. आज हम आपको बताते हैं कि वायु में बढ़ते प्रदूषण के स्तर की वजह हमारे स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है.
वायु प्रदूषण से पड़ने वाला असर :
जहरीले कण रक्त वाहिनियों की दीवारों से गुजरते हैं और रक्त के प्रवाह को प्रभावित करते हैं. वे थ्रांबोसिस का कारण बन सकते हैं.
जहरीले पदार्थो से रक्त वाहिकाओं (ब्लड सेल्स) का व्यास (डायमीटर) कम हो सकता है. इस स्थिति में हाई बीपी भी हो सकता है.
जहरीली हवा के कारण ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है.
हवा में विषाक्त पदार्थो के मिले होने से हृदय की क्रिया प्रणाली प्रभावित हो सकती है और हृदय की रिदम बिगड़ सकती है.
जहरीली हवा में श्वास लेने से महिलाओं को गर्भपात हो सकता है. भ्रूण के विकास की समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
समय से पहले ही बच्चे का जन्म हो सकता है और जन्म के समय बच्चे का वजन भी कम हो सकता है
बढ़ा हार्ट अटैक का खतरा
एक Research में पता चला है, कि दिल्ली वालों में Heart Attack का खतरा पिछले 20 वर्षों में 30 प्रतिशत तक बढ़ गया है. और इसके लिए प्रदूषण भी ज़िम्मेदार है. प्रदूषण और दिल की बीमारियों के बीच Connection सिर्फ भारत में ही नहीं पाया गया है. University of Edinburgh और Netherlands की कुछ Universities के Researchers ने भी एक प्रयोग किया है. इस प्रयोग से ये साबित हो गया है कि वाहनों से निकलने वाले धुएं में जो NanoParticles होते हैं. वो आपकी Blood Stream यानी खून की धारा में भी शामिल हो सकते हैं और वहां से आपके दिल में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.
डॉक्टरों के मुताबिक प्रदूषण के ये कण दिल में खून पंप करने वाली Arteries में धीरे-धीरे जमा होने लगते हैं. और अगर लंबे समय तक धूल और धुएं के कणों से सामना होता रहे तो Arteries में एक तरह की परत जमा हो जाती है.इससे शरीर की धमनियां सिकुड़ जाती हैं और हार्ट अटैक और Stroke का खतरा पैदा हो जाता है.
दिल्ली-पटना सबसे प्रदूषित शहर
हाल ही में 48 प्रमुख वैज्ञानिकों ने अध्ययन जारी किया और पाया कि पीएम 2.5 के स्तर या सूक्ष्म कणमय पदार्थ (फाइन पार्टिक्युलेट मैटर) के संदर्भ में पटना और नई दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं. ये कण दिल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. एक आकलन के मुताबिक वायु प्रदूषण की चपेट में आने पर हर दिन 18 हजार लोग मारे जाते हैं. इस तरह यह स्वास्थ्य पर मंडराने वाला दुनिया का एकमात्र सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन गया है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने कहा, ‘जब प्रदूषण फेफड़ों पर असर डालना शुरू करता है, खासकर छोटे बच्चों के, तब यह घातक साबित हो सकता है. यह एक धीमे जहर की तरह है और इस पर चिंता स्वाभाविक है. इस संदर्भ में बहुत कुछ किया गया है लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी भी है.