कांग्रेस ने बताई राहुल गांधी के मंदिरों में दर्शन की वजह, लेकिन क्या असली वजह एंटनी समिति की रिपोर्ट है

नई दिल्ली: एक दौर था जब बीजेपी के बड़े नेता चुनाव अभियान की शुरुआत हमेशा किसी मंदिर से ही करते थे. इस मामले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्राएं हमेशा याद आ जाती हैं. लेकिन अब ऐसा लगता है कि कांग्रेस भी उसी राह पर है. पिछले कई चुनावों से देखा गया है किकांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधीभी चुनावी अभियान शुरू करने से पहले मंदिर जरूर जाते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी वह मथुरा गए थे. अब इस बार वह गुजरात में मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं. इस पर कांग्रेस ने भी अपना रुख साफ कर दिया है कि वह बीजेपी और आरएसएस के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए तैयार है.

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कहां-कहां गए राहुल गांधी
सोमवार को द्वारिकाधीश मंदिर में प्रार्थना कर अपनी यात्रा शुरु करने वाले राहुल गांधी ने आज सुरेंद्रनगर जिले में प्रसिद्ध चोटिला मंदिर जाने के बाद आज सुबह अपना रोडशो फिर शुरू किया. राजकोट से अपनी यात्रा शुरु करते हुए गांधी चोटिला पहुंचे और वह बिना रुके 15 मिनट में करीब 1000 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में पहुंच गए. वह फिर दर्शानार्थियों का अभिवादन करते हुए महज 15 मिनट में नीचे भी आ गये. शाम में राहुल गांधी कागवाड़ गांव में खोडियार माता की प्रार्थना करने के लिए खोडाल धाम मंदिर गये. खोडियार माता को लेउवा पटेल बहुत श्रद्धा से देखते हैं. पटेलों का एक वर्ग सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की उनकी मांग नहीं मानने पर राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ है. गांधी के पहुंचने पर बड़ी संख्या में पाटीदारों ने ‘जय सरदार, जय पाटीदार’ का नारा लगाकर उनका अभिवादन किया. कागवाड से जेतपुर जाने के रास्ते में वह दासी जीवन को समर्पित एक मंदिर में गए. दलित और बौद्धों में इस मंदिर का बहुत सम्मान है. वह राजकोट के वीरपुर में भी अचानक जलराम मंदिर पहुंच गए.

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कांग्रेस का जवाब
राहुल के मंदिरों में जाने पर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा, ‘इस यात्रा के दौरान विभिन्न मंदिरों में राहुल गांधी का जाना भाजपा और आरएसएस के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला करना है. आरएसएस और भाजपा ने जानबूझकर कांग्रेस को हिंदू विरोधी के रुप में पेश किया है जो सही नहीं है.’

एंटनी समिति की रिपोर्ट से सीख ?
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार की वजह जानने के लिए बनाई गई एके एंटनी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि पार्टी की हार के पीछे मुसलमानों के ‘तुष्टिकरण’ की नीति है और उसकी छवि हिंदू विरोधी बनती गई. जिसकी वजह से ‘सांप्रदायिक संगठनों’ की पकड़ मजबूत होती चली गई. अब सवाल इस बात का है कि क्या एंटनी समिति की रिपोर्ट से सीख लेकर राहुल गांधी ने अपनी रणनीति बदल ली है

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