अमेरिका ने भारत को ‘करेंसी मैनिपुलेटर्स’ निगरानी सूची में डाला

अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में संदेहास्पद विदेशी मुद्रा नीतियों वाले देशों की निगरानी सूची में भारत को शामिल किया था.

वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के एडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को इस तिमाही भी राहत नहीं दी है. उसने चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और इटली समेत 11 देशों को उनकी मुद्रा के व्यवहार को लेकर निगरानी सूची करेंसी बिहेवियर वॉच लिस्ट में रखा है. महामारी की शुरुआत के बाद से अमेरिका ने भारत को दूसरी बार इस निगरानी सूची में डाला है. केंद्रीय बैंक द्वारा डॉलर की खरीद जीडीपी के पांच फीसद से अधिक रहने को इसकी वजह बताया गया है. अमेरिकी वित्त विभाग ने कहा है कि यह सीमा दो फीसद रहनी चाहिए. अमेरिका हर तिमाही इस सूची में वैसे देशों को शामिल करता है, जिसकी मुद्रा कमजोर है. इसलिए उन्हें निगरानी सूची (Watch List) में रखा जाता है. इस पर भारत सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इसका कोई तर्क समझ में नहीं आता है.

निगरानी सूची में 11 देश शामिल
भारत सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इसका कोई तर्क समझ में नहीं आता है. भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने संवाददाताओं से कहा, ‘मैं इसका कोई आर्थिक तर्क नहीं समझ पाया हूँ.’उन्होंने कहा कि केंद्रीय रिज़र्व बैंक मार्केट फ़ोर्सेज़ के अनुरूप ही मुद्रा का संग्रह करता है. पिछले सप्ताह अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने भारत, सिंगापुर, थाईलैंड और मेक्सिको समेत 10 अर्थव्यवस्थाओं को ‘निगरानी सूची’ में डाल दिया था.

पहली बार मई 2018 में शामिल
अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में संदेहास्पद विदेशी मुद्रा नीतियों वाले देशों की निगरानी सूची में भारत को शामिल किया था. इसके बाद वर्ष 2019 के मध्य में भारत को इस सूची से बाहर कर दिया गया था, लेकिन जब दिसंबर 2020 में सूची जारी की गई तो भारत को फिर से शामिल कर लिया गया.

कौन बनाता है यह सूची
अमेरिका की कांग्रेस के निर्देश पर वहां की ट्रेजरी प्रमुख व्यापारिक भागीदार देशों की एक सूची बनाती है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहदआर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नजर रखी जाती है.

कौन डाला जाता है इस सूची में
अमेरिका के 2015 के कानून के मुताबिक कोई भी अर्थव्यवस्था जो कि तीन में से दो मानदंडों को पूरा करती है उसे निगरानी सूची में रख दिया जाता है. हालांकि इस सूची में शामिल होना किसी प्रकार के दंड और प्रतिबंधों के अधीन नहीं होता है, लेकिन यह निर्यात लाभ हासिल करने के लिये मुद्राओं के अवमूल्यन सहित (विदेशी मुद्रा नीतियों के संदर्भ में) वित्तीय बाज़ारों में देश की वैश्विक वित्तीय छवि को नुकसान पहुंचाता है.

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