नई दिल्ली: पिछले ही महीने उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में एक नाबालिग लड़की से गांव के ही एक आदमी ने दुष्कर्म कर दिया. लड़की रात में शौच के लिए घर से निकली थी तभी खेत में आरोपी ने उसे दबोच लिया. इस तरह की घटनाएं आए दिन हमें सुनने को मिलती रहती हैं कि फलां गांव में शौच के लिए गई लड़की या महिला हैवानियत का शिकार हो गई. आखिर कब तक खुले में शौच की कीमत हमारी बहन-बेटियों को अपनी इज्जत लुटा कर चुकानी पड़ेगी. यह सवाल इसलिए उठा कि आज हम ‘वर्ल्ड टॉलयेट डे’ मना रहे हैं. प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव, शहर, जिले और प्रदेशों के खुले में शौच मुक्त होने के कसीदे पढ़े जा रहे हैं, लेकिन सच्चाई एक यह भी है कि आज भी बहुत सारी लड़कियों या महिलाओं की इज्जत शौच के नाम पर तार-तार हो रही है.
यह सही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता मिशन साफ-सफाई के साथ-साथ इस तरह की घटनाओं को रोकने में भी अहम भूमिका अदा कर रहा है और करेगा भी. लेकिन इस मिशन से जुड़ी कुछ और सच्चाई पर भी नज़र दौड़ा लें.
मथुरा जिले के मुखराई गांव में घर-घर में पक्के शौचालय बन गए हैं, लेकिन फिर भी यहां के ज्यादातर लोग, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, खुले में शौच के लिए जाते हैं. यहां घरों में बनाए गए टॉयलेट के नाम पर खानापूर्ति की गई है. टॉयलेट में न तो गंदगी जाने का और ना ही पानी का सही इंतजाम है. इसके अलावा इन्हें घरों में ऐसी जगहों पर बनाया गया है जिन्हें इस्तेमाल करने में लोग संकोच कर रहे हैं.
यहां के रामेश्वर नथोली बताते हैं कि घर के गेट के ठीक सामने टॉयलेट बना दिया गया. इसका आकार भी इतना छोटा है कि कोई आदमी ठीक से इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते. यह रामेश्वर के साथ ही नहीं गांव में सरकार द्वारा बनाए गए हर टॉयलेट का यही हाल है. कुछ लोगों ने तो अब टॉयलेट को स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. कुछ लोगों ने सरकारी टॉयलेट को तुड़वाकर खुद के बजट से नया टॉयलेट बनवा लिया है. यह कोई केवल मुखराई गांव की व्यथा नहीं है.
खुद वॉटरएड की रिपोर्ट बताती है कि भारत के गांवों में बने हर तीन में एक टॉयलेट असुरक्षित और गंदे हैं. 60 फीसदी टॉयलेट में ऐसा देखा गया है कि दो टॉयलेट को एक ही गड्ढे से जोड़ दिया गया है. वॉटरएड की ‘गुणवत्ता और शौचालयों की स्थिरता’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए गए शौचालयों में से 36 फीसदी ऐसे हैं जिनकी एक साल के भीतर की मरम्मत कराकर सुधार करने की जरूरत है. सर्वे में विभिन्न स्थानों के 776 टॉयलेट की जांच की गई. इनमें से 31 फीसदी स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिहाज से कहीं भी खरे नहीं उतरे.
भारत में हर साल 5 साल से कम उम्र के करीब 60,000 बच्चों की मौत डायरिया से होती है. डायरिया होने की मुख्य वजह खुले में शौच और गंदगी ही है. इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि शौचालय न होने से पूरी दुनिया में 1.1 अरब महिलाएं उत्पीड़न की शिकार होती हैं. दुनिया में हर तीन में एक महिला के पास सुरक्षित शौच की सुविधा नहीं है.