नई दिल्ली: आजादी के 70 वर्ष बाद देश की आबादी साढ़े तीन गुणा बढ़ने के साथ साक्षरता दर 16 फीसदी से बढ़कर 74 फीसदी हो गई लेकिन गांव देहात से लेकर छोटे बड़े शहरों में सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों में पढ़ाई की व्यवस्था चरमरा गई है.‘‘शिक्षा’’से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार करने वाली सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली प्राक्कलन समिति ने इस विषय पर सुझाव आमंत्रित किया है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, संसद सदस्य डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में बनी प्राक्कलन समिति (लोकसभा) ‘शिक्षा’ विषय की जांच कर रही है और अपनी राय लोकसभा को प्रस्तुत करेगी. समिति ने शिक्षा विषय के महत्व पर विचार करते हुए ‘शिक्षा’ विषय एवं उच्च शिक्षा के संदर्भ में व्यक्तियों या विशेषज्ञों या जनसाधारण या संस्थान या संगठन और हितधारकों तथा अन्य संबद्ध लोगों से विचार या सुझाव आमंत्रित किया है.
एनसीईआरटी के पूर्व प्रमुख जे एस राजपूत ने ‘‘भाषा’’ से कहा कि गांव देहात, अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी हो गई है कि वहां शिक्षकों को सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, पोलियो ड्राप पिलाने के काम, चुनाव मतदाता सूची एवं मतदान कार्यो और जनगणना में लगाया जाता है. उन्होंने कहा कि बच्चों में पोशाक, साइकिल एवं मध्याह्न भोजन के वितरण का दायित्व भी शिक्षकों पर ही होता है.
प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी अधिक है कि अब वहां बच्चों को पढ़ाना मध्यम वर्ग की जेब से बाहर होता जा रहा है, गरीबों की तो बात ही छोड़ दें. राजपूत ने कहा कि सिर्फ शिक्षा का अधिकार कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है . लोग अब वास्तव में उपयुक्त माहौल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग कर रहे हैं . स्कूलों का मतलब केवल भवन से नहीं होता है बल्कि स्कूल में पर्याप्त मात्रा में अच्छे शिक्षक, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था और उपयुक्त माहौन होना चाहिए . इस दिशा में गांधीजी की सामुदायिक शिक्षा की अवधारणा महत्वपूर्ण है जहां सभी वर्ग के बच्चे एक ही छत के नीचे शिक्षा प्राप्त करें.