जयपुर। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद राजा मानवेंद्रसिंह ने ईडब्ल्यूएस कैटेगिरी के आरक्षण को यथावत रखने और इसे समय की जरूरत बताने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। इस विषय में अपनी मांग रखी कि आर्थिक आधार पर आरक्षण 10% से 20% होना चाहिए और यही न्याय संगत है। देशभर में कई संगठन इस मुद्दे पर विगत कई वर्षों से आर्थिक आधार पर आरक्षण को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है।
सिंह ने कहा कि अगस्त माह में जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकरणी की बैठक में भी सर्व सहमति से जातिगत आरक्षण को समाप्त कर आर्थिक आधार पर देने की मांग भी रखी गई थी। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हमारी मांग के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। उन्होंने कहा कि अब इस कोटे को बढ़ाए जाने की जरूरत है।
उच्चतम न्यायालय दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 10 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा है. EWS कोटा पर SC के 5 जजों में से दो ने आरक्षण को संवैधानिक ठहराया. आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दस फीसदी आरक्षण बना रहेगा, संविधान पीठ ने 2019 का संविधान में 103 वां संशोधन संवैधानिक और वैध करार . अदालत ने कहा – EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ. हालांकि जस्टिस भट ने आरक्षण को असंवैधानिक माना. उन्होंने बाकी जजों से असहमति जताई. संविधान पीठ ने बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने दिया बहुमत का फैसला. जबकि जस्टिस एस रवींद्र भट और CJI यू यू ललित ने असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया
जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता, ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं. साथ ही आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी गई. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता, ईडब्ल्यूएस नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है. असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता. SEBC अलग श्रेणियां बनाता है. अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता . ईडब्ल्यूएस के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता.
इसने सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को 25% सीटें बढ़ाने के लिए निर्देश दिया है. 4,315.15 करोड़ स्वीकृत रुपये की लागत से कुल 2.14 लाख अतिरिक्त सीटें तैयार किए गए हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि इस संबंध में की गई गणना के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान करने के लिए, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आनुपातिक आरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना सामान्य के लिए सीट की उपलब्धता को कम नहीं किया गया है.
यह प्रस्तुत किया गया है कि केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में कुल 2,14,766 अतिरिक्त सीटें सृजित करने की मंज़ूरी दी गई थी; और उच्च शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 4,315.15 करोड़ रुपये खर्च करने की मंज़ूरी दी गई है.शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है. शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘‘पिछले दरवाजे से” आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था.
पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल थे. तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है.
दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया. उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.
शीर्ष अदालत ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की. ‘जनहित अभियान’ द्वारा 2019 में दायर की गई प्रमुख याचिका सहित लगभग सभी याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई है. केंद्र सरकार ने एक फैसले के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में ईडब्ल्यूएस कोटा कानून को चुनौती देने वाले लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कुछ याचिकाएं दायर की थीं. केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है.
It is always special to be back in Mehsana. This is the land which has nurtured me and taught me so much. At the massive public meeting there, elaborated on @BJP4Gujarat’s efforts to improve the power and water situation, focus on education, industrial growth and other subjects. pic.twitter.com/7kC91yuI7d
— Narendra Modi (@narendramodi) November 23, 2022
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