नई दिल्ली: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद एक मेडिकल कॉलेज को राहत पहुंचाने के एक केस की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच के एक जज की भूमिका को संदिग्ध पाया है. इस जज ने एमसीआई के आदेश की अनदेखी करते हुए मेडिकल कॉलेज को राहत दे दी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले को गंभीरता से लिया है.
इस संबंध में एक सूत्र ने DNA को बताया, ”प्रथम दृष्टया ये मामला न्यायिक कदाचार का लगता है. चूंकि ये मामला हाई कोर्ट के एक सिटिंग जज से जुड़ा है, तो ऐसे में उनके खिलाफ इन-हाउस इंक्वायरी ही की जा सकती है. इस संबंध में आदेश पहले ही दे दिए गए हैं.”
यदि जांच में आरोपी जज दोषी पाए गए तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उनके खिलाफ महाभियोग लाने की सिफारिश कर सकते हैं. इससे पहले इस तरह के महाभियोग कलकत्ता हाई कोर्ट के तत्कालीन जज सौमित्र सेन के खिलाफ कुछ साल पहले पेश किया गया था. उसके चलते जस्टिस सेन को इस्तीफा देना पड़ा था.