नई दिल्ली: पाक के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के निजी समाचार चैनल पर खुद को लश्कर ए तैयबा (एलईटी) का सबसे बड़ा समर्थक बताया है. टीवी शो के दौरान उन्होंने मुंबई हमले का मास्टरमाइंड आतंकी हाफिज सईद के बारे में बोलते हुए कहा कि वह मुझे बेहद पसंद है और मैं उससे मिल भी चुका हूं. मुशर्रफ ने आतंकी संगठन जमात-उद-दावा को लेकर यह भी कहा कि न सिर्फ मैं बल्कि वे भी मुझे पसंद करते हैं. यह सभी बातें पाकिस्तान के ARY न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए कहा.
टीवी पर दिए गए इंटरव्यू में मुशर्रफ ने यह भी कहा कि कश्मीर में भारतीय सेना को दबाने और एक्शन में रहने का सपोर्ट पहले से करता आया हूं. अमेरिका के साथ मिलकर भारत ने लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी घोषित कर दिया, लेकिन यह संगठन सबसे बड़ी फोर्स है. मुशर्रफ ने आग उगलना यही बंद नहीं किया बल्कि यह भी कहा कि जी हां, लश्कर ए तैयबा कश्मीर में ही है और यह हमारे और कश्मीर के बीच का मामला है.
पहले भी हाफिज को बताया था हीरो
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह मुशर्रफ इससे पहले भी बड़ा खुलासा कर चुके हैं. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने न सिर्फ ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी और हक्कानी को पाकिस्तान का हीरो बताया था बल्कि तालिबान और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन को पैसे और ट्रेनिंग की बात भी कबूल चुके हैं. मुशर्रफ ने कश्मीर में आतंकवादी भेजे जाने और उन्हें पाकिस्तान से पूरी मदद का खुलासा भी किया था.
मुशर्रफ पहले भी कर चुके हैं बड़े खुलासे
मुशर्रफ ने कहा था कि 1990 के दशक में कश्मीर में आजादी का संघर्ष शुरू हुआ. उस समय लश्कर-ए-तैयबा और 11 या 12 अन्य संगठन गठित हुए थे. हमने उनका समर्थन किया और उन्हें ट्रेनिंग दी, क्योंकि वे अपनी जिंदगी की कीमत पर कश्मीर में लड़ रहे थे.
धार्मिक आतंकवाद को पालने की बात कबूली
मुशर्रफ पाकिस्तान की सेना प्रमुख भी रहे हैं. उनका खुलासा इसलिए अहम है कि राष्ट्रपति और सेना प्रमुख के तौर पर उन्होंने जो किया वही नहीं बल्कि उससे पहले भी पाकिस्तान जो कुछ करता रहा है उसकी गोपनीय जानकारियां उनके पास हैं. हालांकि मुशर्रफ़ यह भी कबूलते हैं कि पहले जिस धार्मिक आतंकवाद को पाकिस्तान ने पोसा अब वही उसी को काट रहा है.
सत्ता छोड़ने के बाद 4 साल थे देश के बाहर
2008 में सत्ता छोड़ने के बाद मुशर्रफ को तक़रीबन 4 साल देश के बाहर बिताने पड़े. 2013 में वे चुनाव लड़ने के लिए पाकिस्तान लौटे लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिया गया. मुशर्रफ़ बेशक ऐसे बयानों के जरिये पाकिस्तान के कट्टरपंथी तबके में अपने लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में जुटे हों, लेकिन उनका ये कच्चा चिठ्ठा पाकिस्तान के इस झूठ को ही बेपर्दा करता है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने में उसका कोई हाथ नहीं.