नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मुंबई में 1993 में एक के बाद एक हुए विस्फोटों की घटना में मौत की सजा पाने वाले ताहिर मर्चेन्ट की सजा के अमल पर सोमवार को रोक लगा दी. शीर्ष अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से 6 सप्ताह के भीतर जवाब मांगने के साथ ही मुंबई में विशेष टाडा अदालत से इस मामले का सारा रिकार्ड भी मंगाया है. टाडा अदालत ने मर्चेन्ट, फीरोज अब्दुल राशिद खान को मौत की सजा और गैंगस्टर अबू सलेम को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. मर्चेन्ट को इस मामले की सुनवाई के दूसरे चरण मे अन्य दोषियों के साथ दोषी ठहराया गया था क्योकि वह फरार था. मुंबई में 12 मार्च, 1993को 12 स्थानों पर बम विस्फोट हुए थे जिनमे 257 व्यक्ति मारे गये थे और 718 अन्य जख्मी हो गये थे. इनमें से कुछ अपंगता से ग्रस्त हो गए हैं.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौदर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को नोटिस जारी किया और रजिस्ट्री को निचली अदालत का रिकार्ड मंगाने का निर्देश दिया. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि पूरी तरह से साक्ष्यों को सूचीबद्ध करके उन्हें सुविधाजनक खण्डों में पेश किया जाये और इसकी एक प्रति अपीलकर्ता (मर्चेन्ट) के वकील को भी दी जाये.’’ न्यायालय ने मौत की सजा के अमल पर रोक लगाते हुये इसे सुनवाई के लिये अगले साल 14 मार्च को सूचीबद्ध कर दिया. मर्चेन्ट ने टाडा अदालत के सात सितंबर के फैसले को चुनौती दी है जिसने अन्य षडयंत्रकारियों के साथ ही उसे भी षडयंत्रकारी पाया है.
अदालत ने 165 जून को अपने फैसले में इस तथ्य का जिक्र किया कि मर्चेन्ट ने (फरार षडयंत्रकारी) टाइगर मेमन के साथ मिलकर काम किया और दुबई में इस साजिश के लिये अनेक बैठकों में शामिल हुआ. ताहिर ने अनेक सह आरोपियों की यात्रा का बंदोबस्त किया और उनकी यात्रा तथा ठहरने के लिये पैसा देने के साथ ही पाकिस्तान में उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की. अदालत ने कहा था कि इस साजिश में ताहिर की भूमिका प्रमुख है. वह साजिश की शुरूआत करने वाले लोगों में से एक है.
इस मामले में अबू सलेम प्रत्यर्पण कानून के प्रावधान की वजह से मौत की सजा से बच गया और उसे अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई. सलेम के अलावा इस मामले में करीमुल्ला खान को उम्र कैद और रियाज सिद्दीकी को दस साल की सजा सुनाई है.