ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः
जानिए कब है आंवला नवमी ? ऐसे करें पूजा
कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय या आंवला नवमी कहलाती है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति व उसकी रक्षा के लिए पूजा करती हैं। आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है। इस दिन भगवान विष्णु के प्रिय आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी से पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। आत्मिक उन्नति के लिए दान आदि करें। इस साल आंवला नवमी 23 नवंबर को है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना कर दान पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।
आंवला नवमी के दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य विधि-विधान से आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से इस पर्व को मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान्न आदि का भोग लगाया जाता है। कई धर्मप्रेमी तो आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते हैं।
इस दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा लपेट कर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
नियम –
1. आंवला नवमी पर प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें।
2. तत्पश्चात आंवला के पेड़ के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्ये नम:’ मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों का तर्पण करें।
3. कपूर व घी के दीपक से आरती कर प्रदक्षिणा करें।
4. पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान्न आदि का भोग लगाएं।
5. आंवला वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें।
6. आंवले के वृक्ष के नीचे विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दक्षिणा भेंट करें। खुद भी उसी वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करें।
7. इस दिन आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ माना जाता है। वैसे तो पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए किंतु आंवले के वृक्ष को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसे घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है।
8. इस दिन पितरों के शीत निवारण के लिए ऊनी वस्त्र व कंबल दान करना चाहिए।
9. अक्षय नवमी धात्री तथा कूष्मांडा नवमी के नाम से भी जानी जाती है।
10. जिन बच्चों की स्मरण शक्ति कमजोर हो तथा पढ़ाई में मन न लगता हो, उनकी पुस्तकों में आंवले व इमली की हरी पत्तियों को रखना चाहिए।
एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए। राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा।
इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है। राजा, रानी से कहने लगे रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए। आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू बेटे के बुरे दिन आ गए। राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा।
आज वे लोग न जाने कहां होगे ? यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है? उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए।
तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
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