नई दिल्ली. चंद्रयान-2 ने शुक्रवार शाम 6:18 बजे चौथी बार चांद की कक्षा सफलतापूर्वक बदल ली। इसके साथ ही यान चांद के सबसे नजदीक पहुंच गया है। अब इसकी चांद से न्यूनतम दूरी 124 किमी और अधिकतम दूरी 164 किमी की रह गई है। चंद्रयान-2 दो दिन तक इसी कक्षा में चांद के चक्कर लगाएगा। इसके बाद यह 1 सितंबर को पांचवी कक्षा में प्रवेश करेगा। 2 सितंबर को विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर यान से अलग हो जाएंगे। विक्रम लैंडर 7 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा।
इससे पहले 28 अगस्त को यह यह तीसरी कक्षा में पहुंचा था। 20 अगस्त को चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में पहुंचा था। कक्षा में पूरी तरह स्थापित होने में इसे करीब आधा घंटा लगा। 23 दिन पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने में इसे 6 दिन लगे।
दो बार चांद की तस्वीरें भेज चुका है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 ने 26 अगस्त को दूसरी बार चांद की तस्वीरें भेजी थीं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ट्वीट कर बताया था कि भेजी गई तस्वीरें चांद की सतह से 4375 किमी ऊपर से टैरेन मैपिंग कैमरे के जरिए ली गई हैं। यह तस्वीरें चांद पर मौजूद क्रेटर्स (गड्ढों) की हैं। इनमें से एक फोटो क्रेटर ‘मित्र’ की है, जिसका नाम भारतीय प्रोफेसर और पद्म भूषण विजेता भौतिकशास्त्री शिशिर कुमार मित्रा के नाम पर रखा गया था। इसके अलावा चंद्रयान-2 ने जैक्सन, माक, कोरोलेव क्रेटर्स की तस्वीरें भी लीं।
इसरो ने बताया कि यान ने चांद के नॉर्थ पोल क्षेत्र की भी कई तस्वीरें लीं। इसमें प्लासकेट, रोझदेस्तवेंस्की और हरमाइट क्रेटर शामिल हैं, जो कि पूरे सौरमंडल में सबसे ठंडे इलाकों में से एक है। इससे पहले चंद्रयान-2 ने बुधवार को चांद की पहली फोटो भेजी थीं। उन्हें चांद की सतह से 2650 किमी की ऊंचाई से लिया गया था।
चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो
चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया। इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं। इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारने की योजना है। इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो है। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है। लैंडर के अंदर मौजूद रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड है।
चंद्रयान-2 मिशन क्या है?
चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा। यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। इसके साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन जाएगा।
ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर क्या काम करेंगे?
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।