भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि यह ऐसी एकादशी है जिसमें देवी-देवता भी व्रत रखते हैं। चतुर्मास में शयन के दौरान इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसलिए चतुर्मास की यह एकादशी विशेष फलदायी मानी जाती है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस शुभ दिन भगवान विष्णु और उनके वामन रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से व्रती, बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है। इस एकादशी का व्रत करने से जाने अनजाने किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था. इस वर्ष वामन जयंती, 29 अगस्त 2020 को मनाई जाएगी.
इस एकादशी के विषय में एक और मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोये थे। इसी कारण इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी से पूर्व दशमी तिथि के दिन से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि में श्री हरि का संकीर्तन कर जागरण करना चाहिए। एकादशी पर पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि को प्रात: काल अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान में दिया जाता है। जलझूलनी एकादशी को डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है। इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब किनारे ले जाकर पूजा की जाती है। संध्या समय में इन मूर्तियों को शोभायात्रा के रूप में वापस लाया जाता है। इस दिन चावल, दही एवं चांदी का दान करना उत्तम फलदायी होता है। विष्णु सहस्रनाम एवं रामायण का पाठ भी इस दिन करें। संतान सुख की प्राप्ति के लिए यह व्रत अत्यंत कल्याणकारी है। इस व्रत में पीले वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु और श्रीगणेश जी की पूजा करें। श्री हरि को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष वामन जयंती, 29 अगस्त 2020 को मनाई जाएगी. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवान श्री विष्णु ने एक अन्य रुप भगवान वामन का अवतार लिया था. इस दिन प्रात:काल भक्त श्री हरि का स्मरण करते हुए नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करते हैं.
वामन द्वादशी पूजा | Vaman Dwadashi Puja
इस शुभ दिन में सभी मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है भगवान श्री विष्णु जी का स्मरण करते हुए उनके अवतारों एवं लीलाओं का श्रवण होता है. विभिन्न स्थानों पर भागवत कथा का पाठ किया जाता है तथा वामन अवतार की कथा सुनी एवं सुनाई जाती है. इस पर्व के उपलक्ष्य पर भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है. संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.
वामन द्वादशी कथा | Vaman Dwadashi Katha
वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है. वामन अवतार कथा अनुसार देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं. असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है. तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं. भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं. दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है. तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्राह्मण-ब्रह्मचारी का रूप धारण करते हैं.
वामन अवतार और बलि प्रसंग | Vaman Incarnation and Bali Prasang
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते हैं.
वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंते हैं. वामन रुप में श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं, राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे देते हैं. वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया और अभी तीसरा पैर रखना शेष था. ऎसे मे राजा बलि अपना वचन निभाते हुए अपना सिर भगवान के आगे रख देते हैं और वामन भगवान के पैर रखते ही, राजा बलि परलोक पहुंच जाते हैं. बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द होते हैं और बलि को पाताललोक का स्वामी बना देते हैं इस तरह भगवान वामन देवताओं की सहायता कर उन्हें पुन: स्वर्ग का अधिकारी बनाते हैं.
वामन द्वादशी व्रत फल | Vaman Dwadashi Fast results
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर इस दिन श्रावण नक्षत्र हो तो इस व्रत की महत्ता और भी बढ़ जाती है. भक्तों को इस दिन उपवास करके वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए. जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था. विधि-विधान पूर्वक व्रत करने से सुख, आनंद, मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है
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