उच्चतम न्यायालय: रामजन्मभूमि केस सबूत पेश करें विवादित स्थल पर ही जन्म हुआ

उच्चतम न्यायालय में बुधवार को रामजन्मभूमि विवाद पर सुनवाई के नौवें दिन रामजन्म पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा कि अथर्व वेद में अयोध्या की पवित्रता का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि अयोध्या में एक मंदिर है, जिसमें पूजा करने से मुक्ति मिलती है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि अयोध्या की पवित्रता पर कोई संदेह नहीं। आप विवादित स्थल के ही जनस्थान होने के साक्ष्य पेश करें।

जन्मस्थान नहीं बांटा जा सकता

मिश्रा से पहले रामलला विराजमान के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने अपनी बहस पूरी की। उन्होंने कहा कि भगवान राम शाश्वत बालक हैं। लिहाजा भूमि पर किसी अन्य के स्वामित्व का सवाल नहीं उठता और उनके जन्मस्थान को बांटा नहीं जा सकता है। उच्च न्यायालय ने प्रतिकूल कब्जा होने के आधार पर मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़े को दो हिस्से जमीन दे दी, जबकि ये प्रतिकूल कब्जा कभी था ही नहीं।

स्कंद पुराण में जन्मस्थान का जिक्र

इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता मिश्रा ने रामजन्म पुनरोद्धार समिति की ओर से बहस शुरू की। उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से जन्म के स्थान का जिक्र किया गया है। इसमें इसकी सटीक दिशा और स्थल तक बताया गया है। यह पुराण पहली से दूसरी शति ईसापूर्व का है। उन्होंने कहा कि अथर्व वेद में भी अयोध्या की पवित्रता का जिक्र किया गया है। साथ ही बताया गया है कि वहां एक मंदिर है, जिसके शिखर पर अमल है और जिसमें पूजा करने से जीवन में मुक्ति मिलती है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उनसे कहा कि अध्योध्या के पवित्र होने पर कोई संदेह ही नहीं है। विरोधी पक्ष भी इस बात को मानता है। यहां सवाल राम के जन्मस्थान का है। आप इस बारे में सबूत दिखाकर प्रदर्शित करें कि विवादित स्थल ही जन्मस्थान है।

सरयू नदी ने मार्ग बदला या नहीं

मिश्रा ने कहा कि स्कंद पुराण में एक नक्शा भी है, जिसमें बताया गया है कि सरयू नदी के किनारे मंदिर है और उसके उत्तर पूर्व में राम का जन्मस्थान है। इस नक्शे से बड़ा कोई और सबूत नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पुराणों का संपादन महर्षि वेदव्यास ने किया था। आदिकाल से अयोध्या को राम का जन्मस्थान माना जाता है। इस नक्शे के तथ्य को हाईकोर्ट ने भी माना है और उसका न्यायिक संज्ञान लिया है। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण आठवीं सदी ईसापूर्व का है और तब से लेकर अब तक नदी ने अपना मार्ग नहीं बदला होगा, यह नहीं कहा जा सकता। यह देखना होगा कि आज सरयू नदी जहां बह रही है, क्या ईसापूर्व आठवीं सदी में भी वहीं बहती थी। अदालत को इस पर विचार करना होगा।

हिंदू महासभा के वकील नहीं कर सके बहस

मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने मिश्र की बहस बीच में ही रोक दी। साथ ही कहा कि वह इस नक्शे के बारे में और तथ्य जुटाएं, फिर अपने तर्क पेश करें। इसके बाद गोगोई ने हिंदू महासभा से जिरह के लिए कहा, लेकिन उसके वकील भी तैयार नहीं थे। हिंदू महासभा ने कहा कि उसे नहीं लग रहा था कि उसका नंबर आज आ जाएगा। अंत में न्यायालय ने मुख्य वादकर्ता गोपाल सिंह विशारद के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार को बहस के लिए कहा। कुमार ने कहा कि वह राम के श्रद्धालु हैं। इस नाते 1949 में मुकदमा दायर किया था। उन्होंने बताया कि गोपाल सिंह की मृत्यु 1985 में हो गई थी। उनकी जगह उनके बेटे राजेंद्र सिंह वादी हैं।

हिंदी दस्तावेज पढ़ने की अनुमति नहीं

कुमार ने बहस शुरू करने के लिए हिंदी में कुछ पढ़ना चाहा, लेकिन अदालत ने इसकी अनुमति नहीं दी। साथ ही कहा कि उन्हें इसका अंग्रेजी अनुवाद लाना चाहिए था, क्योंकि बेंच के जज एएस नजीर हिंदी नहीं समझते। जस्टिस नजीर कर्नाटक से हैं। कुमार ने कहा कि अंग्रेजी अनुवाद है, लेकिन वह स्पष्ट नहीं है। हालांकि बाद में उन्होंने इसी अनुवाद को पढ़कर बहस शुरू की, लेकिन अदालत का समय पूरा होने के कारण सुनवाई गुरुवार के लिए स्थगित हो गई।

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