नई दिल्ली : एकलव्य की कहानी इस युग में मिलना अपने आप में अजूबा है. कहानी कलयुग में भी दोहराई गई, लेकिन आज के जमाने के मुताबिक. और हां इसमें न तो किसी गुरु ने सिखाने से मना किया न ही कोई अंगूठे वाली बात थी, लेकिन लगन के मामले में एकलव्य से कम भी नहीं थी और द्रोणाचार्य की भूमिका निभाई इंटरनेट और यू ट्यूब ने. यह कहानी है उपाशा निक्कु तालुकदार की.
असम के गुवाहाटी में जिमनास्ट सीखने के लिए गुरु का न मिलना 10 साल की उपाशा के लिए बाधा नहीं बन सका. सीखने का जुनून ने उपाशा को वह खेल चुनने की प्रेरणा दी जो डांस, बौले और जिम्नास्टिक का मेल था, और आठ साल की उम्र में उपाशा ने जीवन में किसी कोच का इंतजार नहीं किया.
पिता निकुंज तालुकदार, जो शहर में दवाईयों की दुकान चलाते हैं, का कहना है कि उपाशा हमेशा से संगीत सुन कर अपने लचीलापन का उपयोग कर डांस किया करती थी. जब उन्होंने उपाशा को होमवर्क करते समय अपने पैर के अंगूठे से कान खुजाते देखा, उन्होंने तय कर लिया की लड़की में जिमनास्ट बनने के रुझान है.
जब निकुंज उसे जिमनास्ट की कोचिंग के लिए गुवाहाटी के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्टस ले गए तो वहां के जिमनास्ट कोच ने सलाह दी की उपाशा के लिए रिद्मिक जिमनास्ट ही ठीक होगा लेकिन उसमें ट्रेनिंग देने में असमर्थता जाहिर कर दी क्योंकि वे परम्परागत जिम्नास्ट के ट्रेनर हैं. निकुंज केवल यही जानते थे कि जिमनास्ट में रूसी बहुत माहिर होते हैं, सो कोई सिखाने वाला न मिलने पर पिता पुत्री ने इंटरनेट का सहारा लिया.
उन्होंने ने गूगल यू ट्यूब पर वीडियोज देखने शुरू कर दिए. उपाशा ने यूक्रेन की अन्ना बसोनोवा, इकातेरीना सर्बरीयानसिक्या और तमारा येरोफिएवा और रूस की इरीना त्चाचीना, येवगेनिया कान्येवोऔर अलीना काबोएवा के वीडियोज देखने शुरू कर दिए और यू ट्यूब ने उसे वर्चुअल टीचर दिला दिए. थोड़ा सीखने के बाद हालांकि पंजाब में 10 दिन का कोर्स भी किया उपाशा ने, लेकिन काम ज्यादा वीडियो से सीखा आया.
फिर अंततः मेहनत रंग लाई और उसका नतीजा भी शानदार मिला. 10 साल की उम्र में हाल ही में नेशनल स्कूल में दो गोल्ड मेडल और एक सिल्वर मेडल जीत लिए. उपाशा संभवतः भारत की सबसे कम उम्र की रिद्मिक जिम्नास्ट है.