नई दिल्ली: भारत और यूरोपीय संघ ने अपने 14वें सम्मेलन के दौरान रोहिंग्या शरणार्थी संकट को लेकर ‘‘गहरी चिंता’’ जतायी और दोनों पक्षों ने म्यांमार से आग्रह किया कि वह उनकी वापसी के लिए बांग्लादेश के साथ मिलकर काम करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क के बीच बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने सभी समुदायों के विस्थापितों की म्यांमार में उत्तरी रखाइन प्रांत में जल्द वापसी की जरूरत को रेखांकित किया. टस्क ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि दोनों पक्ष तनाव कम करना और म्यांमार में अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पूर्ण पालन के साथ ही लोगों की मानवीय सहायता तक पहुंच चाहते हैं.
टस्क ने कहा, ‘‘रोहिंग्या लोगों की वापसी स्वेच्छा, सुरक्षा और प्रतिष्ठा के साथ होनी चाहिए. हम संकट के मूल से निपटने के लिए (कोफी अन्नान नीत) अंतरराष्ट्रीय रखाइन परामर्श आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन का आह्वान करते हैं. एक पड़ोसी के तौर पर भारत को प्रतिक्रिया में पहली पंक्ति में खड़ा होता है.’’ संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने इस पर गौर किया कि हिंसा ‘अराकान रोहिंग्या सालवेशन आर्मी ’(एआरएसए) के आतंकवादियों की ओर से किये गए श्रृंखलाबद्ध हमलों से भड़की जिसके कारण सुरक्षा बलों के साथ ही नागरिकों की भी जानें गईं.
संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘भारत और यूरोपीय संघ ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में हाल में हुई हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त की जिसके चलते वहां के प्रांत से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ. इनमें से कई ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ली है.’’ विदेश मंत्रालय की मीडिया ब्रीफिंग में टस्क की ओर से की गई टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर सचिव (पश्चिम) रुचि घनश्याम ने कहा, ‘‘यूरोपीय संघ ने अपनी उम्मीदों के बारे में बात की है और सहमति का रूख संयुक्त बयान में है.’’ संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत और यूरोपीय संघ जरूरतमंद लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने में बांग्लादेश की ओर से निभायी गई भूमिका स्वीकार करते हैं.