जाने मोदी जी के परिवार का सच।

आज जाने मोदी जी के परिवार के बारे में कोई भरता है पेट्रोल तो कोई बेचता है पतंग और है कोई कबाड़ी का करता है काम!*

आज जाने मोदी जी के परिवार के बारे में कोई भरता है पेट्रोल तो कोई बेचता है पतंग और है कोई कबाड़ी का करता है काम

आज आप को मोदी जी के परिवार के बारे म इ बताने जा रहे है वैसे आप को पता है नेताओं के बड़े बड़े परिवार, ख़ूब सारा पैसा शानो शोकत और उनके वीवीआईपी स्टेटस के बारे में तो आपने ख़ूब सुन रखा होगा आइए आज हम आपको आपके अपने पीएम मोदी जी के पुरे परिवार के बारे में कुछ बताते है । जिससे जाने के बाद हमे मोदी जी पे गर्व होगा

ये बात पता होनी चाहिए की प्रधानमंत्री मोदीजी के सबसे बड़े भाई सोमभाई मोदी जिनकी उम्र 75 साल है. सोमभाई मोदी 2015 में पुणे में एक एनजीओ के कार्यक्रम में मौजूद थे. जब दर्शकों को पता चला कि ये मोदीजी के बड़े भाई है तो श्रोताओं में उत्तेजना फैल गई. सोमभाई मोदीजी के पैतृक शहर वडऩगर में वृद्धाश्रम चलाते है. इस समारोह में मंच पर आकर सोमभाई ने कहा कि ”मेरे और प्रधानमंत्री मोदी के बीच एक परदा है. मैं उसे देख सकता हूं पर आप नहीं देख सकते. मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नहीं. प्रधानमंत्री मोदी के लिए मैं उनके उन्हीं 123 करोड़ भाई बहनों में से एक हूँ ।


और बता दे की यह कोई बड़बोलापन नहीं है. ये तो सोमभाई पिछले ढाई साल से अपने छोटे भाई से मिले भी नहीं है. भाइयों की केवल फोन पर बात होती है. उनसे छोटे भाई पंकज, गुजरात सूचना विभाग में एक अधिकारी है, वो भाग्यशाली रहा. पंकज का अक्सर मोदीजी से मिलना जुलना होता रहता है क्यूंकि पंकज के साथ मोदीजी की माँ हीराबेन उन्हीं के साथ गांधीनगर के तीन कमरे के सामान्य-से घर में रहती हैं. प्रधानमंत्री मोदी पिछले छह महीने में राज्य की राजधानी में दो बार अपनी मां हीराबेन से मिलने आ चुके आ है और मई में हफ्तेभर के लिए दिल्ली आवास में भी ले आए थे ।और ये भी की मोदी

हमेसा भारत के प्रधानमंत्री पारंपरिक रूप से परिवार वाले है. नेहरू इंदिरा के साथ रहते थे, उनके उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री अपने बेटा-बेटी, पोता-पोती के साथ मोतीलाल नेहरू मार्ग पर रहते थे. इंदिरा गाँधी के साथ उनके दोनों बेटे राजीव और संजय रहते थे. यहाँ तक कि स्नातक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी एक कंपनी थी. जब 1998 में वो 7 रेस कोर्स रोड में चले गए, तब उनकी दत्तक पुत्री नम्रता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य उनके साथ रहने लगे ।


प्रधानमंत्री मोदी अपने माँ बाप के तीसरी बच्चे है. उनके पिता दामोदरदास मूलचंद मोदी एक चाय की दुकान के मालिक है. मोदीजी की यह नि: स्वार्थ छवि लोगों को दिखाने के लिए उपयोगी है. जैसे कि हाल ही में नोटबंदी के एक हफ्ते बाद 14 नवम्बर को मोदी ने गोवा की एक सभा में अपना एक भावनात्मक नोट हिट कर दिया. मोदीजी ने कहा मैं इतने ऊँचे पद पर बैठने के लिए पैदा नहीं हुआ था. मेरा जो कुछ था, मेरा परिवार, मेरा घर…मैं देशसेवा के लिए सब कुछ छोड़ आया था.”

उन्होंने अपने परिवार को कितना पीछे छोड़ दिया इसका अंदाजा गुजरात की यात्रा से स्पष्ट किया जा सकता है. मोदीजी का परिवार आज भी मध्यवर्गीय जिंदगी जी रहा है. जब 2001 में मोदीजी ने पहली बार मुख्यमंत्री पद जीता था वही मोदीजी के दुसरे बड़े भाई 72 वर्षीय अमृतभाई एक प्राइवेट कंपनी में फिटर के पद से रिटायर हुए थे. 2005 में उनकी तनख्वाह महज 10,000 रु. थी. अमृतभाई अब अहमदाबाद के घाटलोदिया इलाके में अपने 47 वर्षीय बेटे संजय, उसकी पत्नी और दो बच्चों के साथ चार कमरे के मध्यवर्गीय आवास में रिटायरमेंट के बाद वाला जीवन जी रहे हैं. संजय का बेटा नीरव और बेटी निराली दोनों इंजीनियरिंग के छात्र है. संजय आईटीआई प्रमाण पत्र धारक है, वो मध्यवर्गीय दायरे में अपनी लेथ मशीन पर छोटे-मोटे कल-पुर्जे बनाते हैं और ठीक-ठाक जीवन जी लेते है. इन्होने 2009 में कार ख़रीदी थी जो इनके घर के बहार ढकी खड़ी रहती है. इसका इस्तमाल ख़ास मौकों पर ही किया जाता है. पूरा परिवार ज्यादातर दो-पहिया वाहनों पर ही यात्रा करता है ।


संजय के परिवार का कहना है उन्होंने कभी किसी यात्री विमान को अंदर से नहीं देखा है. ये लोग अबतक CM और PM बनने के बाद मोदीजी से सिर्फ दो बार मिले है. एक बार जब 2003 में उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में गांधीनगर के अपने घर में पूरे परिवार को बुलाया था और दूसरी बार 16 मई, 2014 को जब बीजेपी ने लोकसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. सत्ताधर रिहाइशी सोसाइटी में सभी जानते है कि अमृतभाई प्रधानमंत्री के भाई हैं. लेकिन संजय का जिस बैंक में खाता है, उसके अधिकारी ये नहीं जानते है । इनके बेटे प्रियंक को हाल ही में बैंक की लम्बी लाइन में खड़ा देखा था ।

संजय के पास उनके चाचा का एक स्मृति चिन्ह है, जिससे उनके चाचा के करीने से इस्तरी किए कपड़े पहनने की आदत का पता चलता है. मोदी इस आयरन का इस्तेमाल अमृतभाई के साथ अहमदाबाद में 1969 से 1971 के बीच रहने के दौरान किया करते थे. संजय का कहना है कि 1984 में उनके माँ बाप इस आयरन में बेचने वाले थे लेकिन उन्होंने इसे बेचने नहीं दिया. (शायद उन्हें अपने चाचा की महानता का एहसास पहले ही हो गया था). आज अगर मोदी इस आयरन को देखें तो उन्हें ऐसा लगेगा जैसे टाइटेनिक का अवशेष मिला हो, जैसा डूबे जहाज से मिले व्यक्तिगत सामान को देख लोगों को लगा था. सिन्नी ब्रांड का टेबल फेन आज भी उस घर में है जिसे मोदीजी अहमदाबाद की गर्मियों में इस्तमाल किया करते थे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियमों के अनुसार एक प्रचारक को परिवार के सदस्यों से दूरी बनाना आवश्यक है, जिसकों ध्यान में रखते हुए मोदी अपने परिवार से दूर होते चले गये. मोदी संघ के काम में अधिक ध्यान देने लगे और एक ब्रह्मचारी का जीवन जीने लगे. कई वर्षों तक यही सिलसिला चलता रहा. मोदी राजनैतिक सीढिय़ां चढ़ते गए और उनके परिवार वाले उनपर गर्व करते गए. मोदी भी गर्व महसूस करते थे कि वो रिश्तेदारों की किसी तरह की तरफदारी की मांग से बचे हुए हैं. मोदीजी का कहना है कि मेरे भाइयों और भतीजों को इसका श्री जाता है, जो आजतक साधारण जीवन व्यतीत कर रहे है और वो मुझपर किसी भी तरह का दबाव बनाने की कोशिश नहीं करते. आज की दुनिया में, यह एक बेहद मुश्किल काम है.

परिवार के कुछ सदस्यों ने मोदी के छोटे भाई प्रहलाद मोदी, जो सस्ते गल्ले की एक दुकान चलाते हैं और गुजरात राज्य सस्ता गल्ला दुकान मालिक संगठन के अध्यक्ष हैं दुरी बना ली थी. वो मुख्यमंत्री मोदी से अक्सर नाराज रहते है और दुकान मालिकों पर छापा मारने के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं.

मोदी के बाकी भाइयों, भतीजों और भतीजियों का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा हुआ है. उनमें से कुछ बेहद गरीबी की जिंदगी जी रहे है. मोदी के चचेरे भाई अशोकभाई जो मोदी के दिवंगत चाचा नरसिंहदास के बेटे है वो वडऩगर के घीकांटा बाजार में एक ठेले पर पतंगें, पटाखे और कुछ खाने-पीने की छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं. उन्होंने अब 8-4 फुट की छोटी-सी दुकान रु. 1,500 महीने किराए पर ले ली है. इस दुकान से वो करीब 4000 रूपए कमा लेते है. वो और उनकी पत्नी एक स्थानीय जैन व्यापारी के साप्ताहिक गरीबों को भोजन कराने के आयोजन में काम करके 3000 रु. ओर कमा लेते है. वहां अशोकभाई खिचड़ी और कढ़ी बनाते है और उनकी पत्नी बरतन मांजती हैं. ये शहर में एक तीन कमरों के खस्ताहाल मकान में रहते हैं.

उनके बड़े भाई 55 वर्षीय भरतभाई भी ऐसी ही कठिन जिंदगी जीते है. वो वडऩगर से 80 किमी दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव में एक पेट्रोल पंप अटेंडेंट के रूप में काम करते है, जहाँ से वो करीब 6,000 रुपये प्रति माह कमा लेते है. वो हर 10 दिन में घर आते है. वडऩगर में उनकी पत्नी रमीलाबेन पुराने भोजक शेरी इलाके में अपने छोटे-से घर में ही किराना का सामान बेचकर 3,000 रु. महीने की कमाई कर लेती हैं. तीसरा भाई, चंद्रकांतभाई अहमदाबाद के एक धर्मार्थ गौशाला में एक सहायक के रूप में काम करते है.
न्यूज़ सौजन्य से

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