नवरात्र के दिनों में देश भर में दुर्गा के मंदिरों में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में चंडी देवी के मंदिर में एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है. यहां हर शाम आरती के समय भालुओं का एक परिवार मंदिर में पहुंचता है. माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी इनसान को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है.
ये भालू कभी दो तो कभी चार की संख्या में मंदिर पहुंचते हैं. हैरानी की बात ये है कि भालू मंदिर में आकर श्रद्धालुओं के साथ पूरी तरह घुल मिल जाते हैं. यहां तक कि छोटे बच्चे भी इनके पास चले जाते हैं. वन्यजीव विशेषज्ञ भी भालुओं के इस व्यवहार से चकित हैं. उनका कहना है कि आम तौर पर जंगल में भालू का किसी इनसान से सामना हो जाए तो भालू की ओर से हमले की पूरी संभावना रहती है. लेकिन चंडी के मंदिर में भालू इस तरह से पेश आते हैं जैसे श्रद्धालुओं के घर के ही कोई सदस्य हों.
ये चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में स्थित है. भालुओं की ‘भक्ति’ देख कर दूर दूर से आने वाले श्रद्धालु भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर होते हैं. पहाड़ी पर स्थित चंडी देवी के इस मंदिर का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है. यहां चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक है.
मंदिर के पुजारी टुकेश्वर तिवारी का कहना है कि यहां आने वाले भालू भी माता के भक्त हैं. तिवारी के मुताबिक यहां कभी भी भालुओं की ओर से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया गया. चंडी मंदिर के सचिव उत्तम शर्मा का कहना है कि जंगल में भालुओं की प्रवृत्ति हिंसक मानी जाती है. लेकिन मंदिर की चौखट पर आते ही उनके बर्ताव में बदलाव आ जाता है, ये देवी की महिमा नहीं तो और क्या है.
मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भालुओं को देखने के लिए कई बार घंटों इंतज़ार करते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि भालुओं का ये स्वरूप देखना अद्भुत अनुभव है. जब श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं तो भालू भी उन्हीं की तरह पीछे चलते हैं.