नई दिल्ली: केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है कि सरकार ने बड़े उद्योगपतियों का बैंक कर्ज माफ कर दिया है. उन्होंने कहा कि बैंकों का कर्ज नहीं लौटाने वालों के खिलाफ सरकार कड़े कदम उठा रही है और नई पूंजी उपलब्ध कराकर अब तक ‘मजबूर’ रहे बैंकों को अब ‘मजबूत’ बैंक बनाने में जुटी है. जेटली ने कहा कि सरकार ने बैंकों से कर्ज लेकर उसे नहीं लौटाने किसी भी बड़े डिफॉल्टर का कोई कर्ज माफ नहीं किया है. उन्होंने जोर देकर कहा कि 12 बड़े बकायेदारों के खिलाफ 1,75,000 रुपये की बकाया राशि की समयबद्ध वसूली के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है. एक ब्लॉग पोस्ट में जेटली ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों से, एक अफवाह फैल रही है कि बैंकों द्वारा पूंजीपतियों का कर्ज माफ किया जा रहा है…सरकार ने बड़े बकायेदारों (एनपीए बकायेदारों) का कोई भी कर्ज माफ नहीं किया है.’
उन्होंने कहा, ‘इसके विपरीत, नए दिवाला और दिवालापन संहिता के तहत 12 सबसे बड़े बकायेदारों के खिलाफ अगले छह से नौ महीनों में कुल 1,75,000 करोड़ रुपये कर्ज की वसूली के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण में मामला भेजा गया है.’ बैंकों के पुनर्पूजीकरण की आलोचनाओं का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि एनपीए (फंसे हुए कर्ज) को माफ किया जा रहा है. सरकारी बैंकों को पहले भी पूंजी मुहैया कराई गई है. उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2010-11 और 2013-14 के दौरान भी सरकार ने बैंकों को पुनर्पूंजीकरण के लिए 44,000 करोड़ रुपये दिए थे. क्या वह भी पूंजीपतियों का कर्ज माफ करना था?’
मंत्री ने एनपीए संकट को लेकर पूर्व की यूपीए सरकार पर आरोप लगाया और कहा कि सरकारी बैंकों ने 2008 से 2014 के बीच ज्यादा से ज्यादा कर्ज बांटे थे. वित्त मंत्री ने कहा, यह पूछा जाना चाहिए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 2008 से 2014 के बीच किसके कहने पर वे कर्ज दिए जो आज एनपीए बन गए हैं.’ जेटली ने कहा, ‘अफवाहें फैलाने वालों से जनता को पूछना चाहिए कि किसके कहने पर और किसके दबाव में ये कर्ज वितरित किए गए. उनसे यह भी पूछा जाना चाहिये कि जब इन कर्ज लेनदारों ने बैंको को कर्ज और ब्याज का भुगतान करने में देरी की तो तत्कालीन सरकार ने क्या फैसला किया और क्या कदम उठाए.’
अरुण जेटली ने कहा कि समय पर कर्ज नहीं लौटाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के बजाय उस समय की सरकार ने कर्ज वर्गीकरण के नियमों में ही राहत दे दी, ताकि उनके ऋण खातों को एनपीए खातों में जाने से बचाया जा सके. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने जब संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा की तो 4.54 लाख करोड़ रुपये के कर्ज जिन्हें वास्तव में एनपीए होना चाहिए था, उन्हें एनपीए होने से छिपाए रखा गया और बाद में इनकी पहचान हुई.