नई दिल्ली: जानबुझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले अब दिवालिया कानून का फायदा नहीं उठा पाएंगे. इस बाबत केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिवालिया कानून (Insolvency and Bankruptcy Code यानी IBC) में बदलाव के लिए अध्यादेश जारी करने का प्रस्ताव किया है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद नया अध्यादेश लागू कर दिया जाएगा.
मौजूदा व्यवस्था में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी कर्ज देने वालों यानी बैंक या वित्तीय संस्थाओं की याचिका पर तय करती है कि किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की जाए या नहीं. इस प्रक्रिया में कंपनी के निदेशक बोर्ड को भंग कर दिया है और एक इनसॉलवेंशी प्रोफेशनल नियुक्त किया जाता है. ये प्रोफेशनल, कंपनी प्रबंधन और बैंकों के साथ मिलकर कंपनी की वित्तीय स्थिति सुधारने और कर्ज चुकाने का रास्ता ढ़ूढ़ने की कोशिश करता है. इसके लिए शुरुआती तौर पर छह महीने का समय मिलता है जिसे बाद में तीन महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है. इसके बाद भी अगर कंपनी की माली हालत नहीं सुधरी और कर्ज चुकाने का रास्ता नहीं निकला तो बैंक उसकी संपत्ति बेचने का काम शुरु कर सकते हैं. यहीं पर शुरु होता है खेल. पहले तो कोशिश यही होती है कि बैंक कुछ डिस्काउंट के बाद बकाया कर्ज का रकम लेना स्वीकार कर ले. तकनीकी भाषा में इसे ‘हेयरकट’ कहते हैं.
इसका मतलब ये हुआ कि बैंक का बकाया अगर 100 करोड़ रुपये है तो वो 50 या 60 करोड़ रुपये पर कर्ज निबटाने की कोशिश की जाती है. इसी का फायदा जानबुझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाले उठाते हैं. पहले तो सस्ते में बकाया कर्ज का निबटारे की पहल करते हैं, फिर कंपनी की संपत्ति बिकने की सूरत में बोली भी लगा देते हैं. कोशिश यही होती है कि किसी तरह से मालिकाना हक बना रहे. अब दिवालिया कानून में बदलाव कर इसी प्रवृति को रोकने की कोशिश है.
अध्यादेश के जरिए, जानबुझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाले दिवालिया कंपनी खरीदने के लिए बोली नहीं लगा सकेंगे. ये रोक एक साल तक के लिए लागू होगी. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, कई बैंको ने आशंका जतायी थी कि दिवालिया कानून में बोली लगाने वालों की स्पष्ट परिभाषा नहीं होने का जानबुझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाले फायदा उठा सकते हैं. इसी के मद्देनजर कानून में बदलाव के जरिए स्पष्ट परिभाषा दी जाएगी. यहां ये ध्यान रखा गया है कि हर प्रमोटर पर पाबंदी नहीं लगे.
ध्यान रहे कि जानबुझ कर कर्ज नहीं चुकाने वाला का तमगा तभी लगता है जब तमाम कोशिशों के बावजूद फंसे कर्ज निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता और फिर बैंक और वित्तीय संस्थाओं को अदालत की मदद लेनी पड़ती है. फिर ये तय होता है कि कर्ज नहीं चुकाने वाला जानबूझकर की श्रेणी में आता है या नहीं.
दिवालिया कानून में बदलाव लाने के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाने के पीछे बड़ी वजह ये है कि 12 मामलों पर एनसीएलटी में अगले महीने सुनवाई होने वाली है. दूसरी ओर संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से शुरू होने की खबरें हैं. अध्यादेश लागू होने के बाद सरकार को संसद के अगले सत्र में विधेयक लाना होगा. विधेयक जब भी पारित हो, लेकिन आम तौर पर अध्यादेश लागू होने से की गयी कार्रवाई को कानूनी मान्यता होती है.