देवरिया शेल्टर होम केसः गिरिजा ने 25 वर्षों में खड़ा किया करोड़ों का साम्राज्य

देवरिया
यूपी के चर्चित देवरिया शेल्टर होम केस की मुख्य आरोपी संचालिका गिरिजा त्रिपाठी अभी पुलिस की गिरफ्त में है और इस मामले में हर रोज नए खुलासे हो रहे हैं। आज उनके पास कथित रूप से करोड़ों की संपत्ति हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कैसे मामूली आर्थिक पृष्ठभूमि की गिरिजा ने करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया?

दरअसल, कभी गिरिजा त्रिपाठी एक हाउसवाइफ थी और शुरुआती दिनों में परिवार की आय बढ़ाने के लिए वह सिलाई का काम करती थी। धीरे-धीरे उसने कपड़ों की सिलाई छोड़कर शेल्टर होम खोला और उसके बाद अपना कारोबार देवरिया से गोरखपुर तक फैला लिया। उसकी स्थानीय प्रशासन से लेकर शासन तक ऊंची पकड़ के चलते स्थानीय लोग उससे घबराते थे।

25 वर्षों में फैलाया करोड़ों का साम्रराज्य
देवरिया स्थित मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं सेवा संस्थान चलाने वाली गिरिजा त्रिपाठी महिला और बच्चों के अधिकारों के लिए जानी जाती थी। वह पावरफुल लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी। उसे महिलाओं और बच्चों के लिए योगदान करने के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। गिरिजा त्रिपाठी पूर्वी उत्तर प्रदेश में शेल्टर होम की चेन चलाती है। उसके बच्चों के शेल्टर होम से लेकर वृद्धों के शेल्टर होम तक चलते हैं। उसने शेल्टर होम से ही करोड़ों रुपये का कारोबार बीते 25 वर्षों में फैला लिया।

चिडफंड कंपनी को बनाया एनजीओ
1993 में उसने अपनी एनजीओ का पंजीकरण कराया था। यह पंजीकरण चिटफंड कंपनी के तौर पर कराया गया था लेकिन बाद में उसे शेल्टर होम चलाने का चस्का चढ़ा और उसने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर एनजीओ के उद्देश्य बदलवा लिए। उसके बाद वह लगातार शेल्टर होम चलाती रही और अपना साम्राज्य फैलाती रही। जून 2017 में यह एनजीओ ब्लैकलिस्ट हो गया।

बेरोजगार हो गए थे पति
गिरिजा त्रिपाठी रुपई गांव की रहने वाली थी। उसकी शादी नूनखार के रहने वाले मोहन त्रिपाठी के साथ हुई। मोहन भटनी शुगर मिल में काम करते थे और गिरिजा परिवार की आय बढ़ाने के लिए सिलाई सेंटर चलाने लगी। 90 के दशक में जब भटनी शुगर मिल बंद हो गई तो मोहन बेरोजगार हो गए उसके बाद वह गिरिजा और अपने बच्चों के साथ देवरिया में आकर रहने लगे।

इसलिए शुरू किया सिलाई सेंटर
देवरिया में गिरिजा ने मां विंध्यनासिनी प्रशिक्षण संस्थान बनाया और सिलाई प्रशिक्षण का काम शुरू किया। वह अपने एनजीओ के माध्यम से देवरिया और आसपास जिलों में साक्षरता के लिए कैंप लगाने लगी। 15 साल पहले उसकी एनजीओ को सरकारी प्रॉजेक्ट्स मिलने शुरू हो गए। उसके बनाए शेल्टर होम को सरकार फंड देने लगी। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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