पोप फ्रांसिस रोहिंग्या संकट के बीच म्यांमार पहुंचे

नेपीथा: पोप फ्रांसिस दो दक्षिण एशियाई देशों के छह दिवसीय दौरे के तहत सोमवार (27 नवंबर) को म्यांमार पहुंचे. फ्रांसिस म्यांमार का दौरा करने वाले पहले पोप हैं. पोप का यह दौरा म्यांमार सेना द्वारा राखिने प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों पर सैन्य कार्रवाई के बाद उपजे मानवीय संकट के बीच हो रहा है. इस संकट की वजह से 620,000 रोहिंग्या देश छोड़कर बांग्लादेश भाग गए हैं. समाचार एजेंसी एफे के मुताबिक, फ्रांसिस सोमवार को यांगून पहुंचे. वह बिशप मुख्यालय में रुकेंगे, जहां वह म्यांमार के धार्मिक नेताओं से वार्ता करेंगे.

पोप फ्रांसिस मंगलवार को राजधानी नेपीथा के लिए रवाना होंगे, जहां राष्ट्रपति हटिन क्याव और स्टेट काउंसिलर आंग सान सू की द्वारा उनका आधिकारिक रूप से स्वागत किया जाएगा. पोप फ्रांसिस बुधवार (29 नवंबर) को प्रार्थना सभा में हिस्सा लेंगे, जिसके बाद वह म्यांमार के बौद्धों की सर्वोच्च परिषद और अन्य बिशप से मुलाकात करेंगे.

वह गुरुवार (28 नवंबर) को कैथ्रेडल ऑफ सांता मारिया में बच्चों के लिए होने वाली प्रार्थना सभा में शामिल होंगे और उसके बाद सेना प्रमुख जनरल मिग आंग हलेंग से मुलाकात करेंगे. कुछ विश्लेषकों के मुताबिक, पोप फ्रांसिस बांग्लादेश में मानवीय संकट के लिए मध्यस्थ की भूमिका भी निभा सकते हैं. पोप फ्रांसिस म्यांमार के बाद गुरुवार को बांग्लादेश जाएंगे. वह 1986 के बाद ढाका की यात्रा करने वाले पहले कैथलिक नेता होंगे.

वह बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों के एक छोटे समूह से मुलाकात कर सकते हैं. म्यांमार की सेना पर रोहिंग्या मुस्लिमों के जातीय सफाया का आरोप लग रहा है. बीते तीन महीनों में उत्तरी रखाइन राज्य से 6,20,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम पड़ोसी बांग्लादेश भाग चुके हैं.

पोप के चार दिवसीय दौरे से म्यांमार पर दबाव और बढ़ गया है और राज्यरहित अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बर्ताव पर कड़ी नजर है. इस समुदाय को पोप ने ‘‘ भाई और बहन ’’ बताया है. बौद्ध कट्टरपंथियों की उनके हर उस भाषण पर कड़ी नजर रहेगी जिसमें भी ‘‘रोहिंग्या’’ का जिक्र आएगा. यहां उन्हें ‘‘बांग्ला’’ कहा जाता है और कथित तौर पर बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाता है.

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