नागपुर: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार (30 सितंबर) को कहा जम्मू एवं कश्मीर को पूरी तरह भारत में मिलाने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की. भागवत का बयान ऐसे समय पर आया है, जब देश में अनुच्छेद 370 पर बहस छिड़ी हुई है. यह अनुच्छेद जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है. आरएसएस स्वयंसेवकों को 92वें स्थापना दिवस पर संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि 1947 में पश्चिम पाकिस्तान से राज्य में पलायन कर आए हिंदू “भारत में रहने और हिंदू बने रहने के अपने निर्णय के कारण शरणार्थियों की एक दयनीय स्थिति में हैं.”
भागवत अनुच्छेद 35(ए) जैसे कुछ खास संवैधानिक प्रावधानों को जिम्मेदार ठहराया, जो जम्मू एवं कश्मीर के निवासियों को परिभाषित करने की शक्ति राज्य विधानमंडल को देता है और इन हिंदू प्रवासियों को ‘पिछड़ेपन की जिंदगी’ देता है. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि जम्मू एवं कश्मीर राज्य में भेदभावपूर्ण प्रावधानों ने उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित किया था.” उन्होंने ऐसी स्थिति बनाने का आग्रह किया, जहां वे “एक सुखी, सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन जी सकें. साथ ही वे अपने धर्म और राष्ट्रीय पहचान के प्रति समर्पित हो सकें.”
अनुच्छेद 35 (ए), जो गैर-निवासियों को राज्य में संपत्ति खरीदने से, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने से, जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनाव में मतदान करने से रोकता है. इस अनुच्छेद को निरस्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका पर बहस चल रही है.
भागवत ने कश्मीरी पंडितों के बारे में भी बात की, जो 1990 के दशक में एक सशस्त्र बगावत के बाद घाटी से चले गए थे. उनके हालात के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी स्थिति ‘यथावत बनी हुई है’. उन्होंने कहा, “वर्षों से व्यवस्थित और झूठे प्रचार के माध्यम से बनाए गए अलगाव और अशांति के जहर को खत्म करने के लिए, समाज को इन सकारात्मक कार्यों के माध्यम से स्वाभाविक स्नेह दिखाना होगा.”
उच्चतम न्यायालय भी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने की मांग की गई है जो राज्य विधानसभा को ‘स्थायी निवासी’ को परिभाषित करने की अनुमति देता है. हिंदुवादी संगठनों ने इसे भेदभावपूर्ण बताया है. पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस जैसी कश्मीर की पार्टियां संविधान में राज्य को मिले विशेष दर्जे में किसी भी तरह के बदलाव के खिलाफ हैं. संघ प्रमुख ने कहा कि विकास के लाभ को पूरे जम्मू-कश्मीर के लोगों तक बिना किसी भेदभाव के पहुंचाने की आवश्यकता है जिसमें जम्मू और लद्दाख क्षेत्र भी शामिल हैं.