राजस्थान में: गहलोत मंत्रिमंडल में विस्तार की सुगबुगाहट तेज

राजस्थान में करीब एक महीने तक चले सियासी संकट के खत्म होने के बाद अब सरकार पटरी पर लौटने पर लगी है. इसके साथ ही राज्य में केबिनेट विस्तार की सुगबुगाहट भी शुरू हो गयी है। जहां मंत्रियों ने अपने-अपने विभागों की सुध लेनी शुरू कर दी है, वहीं सीएम अशोक गहलोत और नाराजगी के बाद वापस लौटे सचिन पायलट ने भी अपने-अपने तरीके से रणनीति तैयार ली है। इसके तहत सचिन पायलट ने बुधवार जोरदार अंदाज में अपने निर्वाचन क्षेत्र टोक में जाकर अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की और साफ कर दिया की AICC द्वारा बनायीं गयी तीन सदस्यीय कमिटी उनके समर्थकों के साथ इंसाफ करेगी।

राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के अन्दर मचे सियासी घमासान के थमने के बाद अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट फिर से पूरी तरह एक्शन मोड़ में आ गए हैं। जहां सीएम अशोक गहलोत ने प्रशासनिक फेरबदल के साथ अब कामकाज पर धयान देना शुरू कर दिया है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्तगी के बाद सचिन पायलट ने फिर से अपने पैर जमाने की कोशिश के तहत अपने निर्वाचन क्षेत्र टोंक में जोरदार तरीके से अपना शक्ति प्रदर्शन किया। पायलट नए अंदाज में सड़कों पर समर्थकों के बीच उतरे और नए सिरे से मानों अपनी राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर दी है।

कहा तो यह भी जा रहा है की पायलट आने वाले दिनों में पूरे राज्य का भी दौरा कर सकते हैं। भले ही सचिन पायलेट के पास सरकार या संघटन में अब कोई बड़ा पद नहीं है और बागी होकर अपनी ही सरकार को संकट में डालने का ठीकरा उनके माथे फूट चूका है, लेकिन उनके समर्थकों का जोश जरा भी कम नहीं हुआ है। जयपुर से टोंक के रास्ते इसी तरह उनका जगह-जगह स्वागत हुआ और खुद सचिन पायलट की माने तो AICC तीन सदस्यीय कमिटी उनके समर्थकों के सरकार और संघटन में भूमिका तय करेगी।

दरअसल खुद सचिन पायलट को पीसीसी अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया जा चुका है और उनका साथ देने वाले, एनएसयूआई, यूथ कांग्रेस और सेवादल के अध्यक्ष के साथ दो मंत्रियों को भी बर्खास्त किया जा चूका है। अब घर वापसी के बाद सचिन पायलट अपना साथ देने वाले इन सभी लोगों की सत्ता और संघटन में सम्मानजनक वापसी चाहते हैं। वैसे भी  सियासी महासंग्राम थमने के बाद अब सबको अशोक गहलोत के प्रस्तावित मंत्रिमंडल फेरबदल और विस्तार का इंतजार है। इस वक्त मौजूदा मंत्रिमंडल मे सीएम सहित 22 मंत्री है और अधिकतम 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं। ऐसे में पायलट कैंप हटाए गए विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा को दोबारा मंत्री बनाने के साथ कुछ और जगह मांग सकते हैं ताकि सचिन पायलेट और बीमार पड़े  मास्टर भंवर लाल की इस कैम्प की तरफ से भरपाई हो सके।

इसके लिए इस कैम्प से दीपेन्द्र सिंह, हेमाराम चौधरी,बृजेन्द्र ओला और मुरारीलाल मीणा का नाम सबसे आगे चल रहा है। जबकि अशोक गहलोत का साथ देने वाले कांग्रेस के परसराम मोरदिया, महेश जोशी, महेंद्स्र जीत सिंह मालवीय, मंजू मेघवाल सहित  कई बड़े नेता और बड़ी भूमिका निभाने वाले निर्दलीय विधायकों के साथ BSP छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले 6 में से राजेन्द्र गुडा सहित 2 विधायक भी इस रेस में काफी आगे हैं। लेकिन अब बदले हालात के मद्देनजर निर्दलीय और बसपा से आए चंद गिने चुने ही विधायक अब मंत्री बनते दिख रहे है और खुद सीएम गहलोत भी नहीं चाहेंगे की अपने वफादारों को नज़रन्दाज़ करके सचिन पायलेट खेमे के विधायकों को फिर से तरजीह दें।

वैसे मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान जातिगत समीकरणों को बनाए रखना भी बड़ा चुनौती वाला काम है। क्योंकि यदि बसपा में से आए राजेन्द्र गुढा को मंत्री बनाया जाता है की कांग्रेस के बड़े नेता और सेखावती से आने वाले राजपूत दीपेन्द्र सिंह को कैसे और किस जातिगत, सियासी और स्थानीय समीकरण के तहत शामिल किया जाएगा। यह बड़ा सवाल रहेगा। लिहाजा कहा जा रहा है की 30 मंत्री, 30 बोर्ड-आयोग में चेयरमैन और 10 संसदीय सचिव बनाते हुए 70 विधायक तो ऐसे एडजस्ट करके संतुलन बनाने की कोशिश की जायेगी। इस खींचतान का ही नतीजा है की बीजेपी अब भी दावा कर रही है की कांग्रेस में अब भी सब कुछ सही नहीं हुआ है।.

बहरहाल भले ही राजस्थान का राजनितिक संकट खत्म हो गया है लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्ति को लेकर अब सबकी नज़र नए प्रभारी अजय माखन और त इन सदस्यीय कमेटी के समझौते पर ही टिकी हुई है और इस कमेटी की जरा सी चुक फिर से राजस्थान में किसी बड़े मनमुटाव का कारन बनकर उभर सकती है।

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