राष्ट्र को नोटबंदी की सालगिरह का तोहफा हैं मुकुल रॉय

आठ नवंबर को नोटबंदी की पहली सालगिरह है. इस मौके पर मुकुल रॉय से अच्छा नेशनल गिफ्ट क्या हो सकता है. बिना वजह काले धन के आरोपी दूसरे दलों में घूमते दिखे, यह नोटबंदी की सफलता के ऑप्टिक्स के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए बीजेपी उन्हें अपने घर ले आई. अब भाषण ही तो देना है तो दो घंटे का भाषण तीन घंटे का कर दिया जाएगा. कहा जाएगा कि मां शारदे की बड़ी कृपा हुई कि शारदा स्कैम के आरोपी भी आ गए. अब तो अदालत का भी काम कम हो गया. काला धन तृणमूल वालों के यहां से कम हो गया. ताली बजाने वाले भी होंगे. भारत की जनता का सफेद धन फूंक कर काला धन पर विजय प्राप्त करने का जश्न मनेगा. जिसमें शामिल होने के लिए दूसरे दलों से काले धन के आरोपी आ जाएं तो चार चांद लग जाएं. बल्कि बीजेपी को उन नेताओं की अलग से परेड निकालनी चाहिए जिन पर उसने स्कैम का आरोप लगाया और फिर अपने में मिलाकर मंत्री बना दिया.

मुकुल रॉय ने भी बीजेपी में आकर अच्छा किया है. उनके बीजेपी में आने से सीबीआई या ईडी जैसी जांच एजेंसियों को खोजने के लिए तृणमूल के दफ्तर नहीं जाना होगा. कई बार लगता है कि यह एक पैटर्न के तहत होता है. पहले जांच एजेंसियां लगाकर आरोपी बनाए जाते हैं. फिर न्यूज़ एंकर लगाकर इन आरोपों पर डिबेट कराए जाते हैं और एक दिन चुपके से उस आरोपी को भाजपा में मिला दिया जाता है. असम के हेमंत विश्वा शर्मा जब बीजेपी में शामिल हुए उससे एक महीना पहले बीजेपी ने वॉटर स्कैम में शामिल होने का आरोप लगाया था. हेमंत की वजह से बीजेपी की बड़ी जीत हुई और वे दोबारा मंत्री बन गए. उत्तराखंड में भी आपको कई मंत्री ऐसे मिलेंगे जिन पर विपक्ष में रहते हुए बीजेपी घोटाले का आरोप लगता थी. राज्य में सरकार बदल गई मगर मंत्री नहीं बदले. जो कांग्रेस में मंत्री थे, वो बीजेपी में मंत्री हो गए. महाराष्ट्र में नारायण राणे भी आने वाले हैं. जिन पर बीजेपी ने करप्शन के खूब आरोप लगाए हैं.

दूसरे दलों से आकर घोटाले के आरोपी नेता लगता है बीजेपी में सीबीआई मुक्त भारत एन्जॉय कर रहे हैं. अब तो हर दूसरा नेता देखकर लगता है कि ये कब बीजेपी में जाएगा, ये ख़ुद से जाएगा या सीबीआई आने के बाद जाएगा? यही नया इंडिया है. टूथपेस्ट वही रहता है. बस ज़रा सा मिंट का फ्लेवर डालकर नया कोलगेट लांच हो जाता है. उस नया इंडिया का फ्रंट है राष्ट्रवाद, जिसके पीछे एक गोदाम है जहां इस तरह के कई उत्पाद तैयार किए जाते रहते हैं. यूपी चुनाव के वक्त एक नारा खूब चला था. यूपी में रहना है तो योगी-योगी करना होगा. बीजेपी को एक और नारा लगाना चाहिए. सीबीआई से बचना है तो बीजेपी-बीजेपी करना होगा. जो बीजेपी से टकराएगा वो बीजेपी में मिल जाएगा.

आरएसएस के संगठन और नेतृत्व का कितना महिमांडन किया जाता है कि वहां नेतृत्व तैयार करने की फैक्ट्री चल रही है. हिमाचल प्रदेश में 73 साल के धूमल मिले. कर्नाटक में 74 साल के येदुरप्पा हैं. अगर संघ की फैक्ट्री में इतने नेता बन ही रहे हैं तो फिर दूसरे दलों से नेता क्यों लाए जा रहे हैं, और वे क्यों आ रहे हैं जिन पर स्कैम का आरोप भाजपा ही लगा चुकी है.

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पहले बीजेपी में आगे जाने के लिए नेता संघ का बैकग्राउंड ठीक रखते थे, अब बीजेपी में आगे जाना है तो पहले तृणमूल में जाना होगा, कांग्रेस में जाना होगा, वहां कुछ ऐसा स्कैम करना होगा कि बीजेपी की नजर पड़ जाए. संघ का रूट बहुत लंबा है. बाल्यावस्था से चार बजे सुबह जागकर संघ की शाखा में जाओ. उससे अच्छा है कि मुकुल रॉय वाली तरकीब अपनाओ. प्रधानमंत्री मोदी से नाराज़ लोग भी पूछते हैं, मोदी का विकल्प क्या है? उधर मोदी शाह इस काम में लगे हैं कि कांग्रेस में कुछ और बचा है, तृणमूल में कुछ और बचा है, बीजद में कुछ और बचा है! बीजेपी में अलग-अलग दलों से आए नेताओं को लेकर प्रकोष्ठ होना चाहिए. जैसे कांग्रेस प्रकोष्ठ, तृणमूल प्रकोष्ठ, बीजद प्रकोष्ठ, राजद प्रकोष्ठ.

आप कह सकते हैं कि मुकुल राय ने जब कथित रूप से स्कैम किया था तब उनका खाता आधार से लिंक नहीं हुआ था, अब बीजेपी में आ गए हैं तो खाता लिंक हो गया है. इस पंक्ति को समझने के लिए दो बार पढ़िएगा. हाई लेवल का है. फेसबुक पर लोग मुकुल रॉय को लेकर बीजेपी का मज़ाक उड़ा रहे हैं. यह ठीक नहीं है. बीजेपी ने मुकुल रॉय का मज़ाक उड़ाया है. वे तृणमूल कांग्रेस के काबिल संगठनकर्ता माने जाते थे, बीजेपी ने अपनी दोनों जांच एजेंसियां लगाकर अपने में मिला लिया. पहली जांच एजेंसी सीबीआई टाइप और दूसरी न्यूज़ चैनल के वो एंकर जिनके शारदा स्कैम पर आज भी कई वीडियो यू ट्यूब में पड़े मिल जाएंगे.

आईटी सेल को शारदा स्कैम को लेकर अपने पुराने ट्वीट मिटा देने चाहिए. बेकार में प्रतीक सिन्हा उन्हें निकालकर ऑल्ट न्यूज़ में लिखने लगेंगे. फिलहाल उन तमाम एंकरों को बीजेपी ने अच्छा तोहफा दिया है. मुकुल रॉय के रूप में नोटबंदी की सालगिरह का रिटर्न गिफ्ट.
नोट- हर बात पर हंसा नहीं जाता है. हंसाया भी जाता है.

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