श्रीनगर: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अनुच्छेद 35ए की संवैधानिक वैधता के मसले पर सुनवाई होगी. इस संबंध में चार याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें इस अनुच्छेद की वैधता को चुनौती दी गई है. मुख्य याचिका दिल्ली के एनजीओ वी द सिटीजन ने 2014 में दायर की थी. उसके बाद तीन और याचिकाएं दायर की गईं. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के स्थायी बाशिंदों के विशेष अधिकारों से संबद्ध है.
क्या है 35ए?
संविधान का यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने की शक्ति देता है. इसको अनुच्छेद 370 के अधीन ”संवैधानिक (जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में)ऑर्डर, 1954” के तहत जोड़ा गया. 17 नवंबर, 1956 को अंगीकार किए गए जम्मू-कश्मीर संविधान में स्थायी निवासी को परिभाषित किया है. इसके 14 मई, 1954 को राज्य का विषय माना गया. यदि कोई 10 वर्षों से राज्य का नागरिक हो और उसके पास कानूनन राज्य में अचल संपत्ति हो तो उसको स्थायी निवासी माना जाएगा. जम्मू-कश्मीर विधानमंडल ही इस परिभाषा को दो-तिहाई बहुमत से बने कानून के द्वारा बदल सकता है. इस लिहाज से अनुच्छेद 35ए भारतीय संविधान में एक ‘प्रेंसीडेशियल आर्डर’ के जरिए 1954 में जोड़ा गया था. यह राज्य विधानमंडल को कानून बनाने की कुछ विशेष शक्तियां देता है.
अलगाववादियों का विरोध
जम्मू-कश्मीर के तीन अलगाववादी नेताओं ने अनुच्छेद 35ए को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसला किए जाने की स्थिति में घाटी के लोगों से एक जन आंदोलन शुरू करने का अनुरोध किया है. साथ ही, यह भी कहा कि राज्य सूची के विषय से छेड़छाड़ फलस्तीन जैसी स्थिति पैदा करेगा. यहां एक संयुक्त बयान में अलगाववादी नेताओं- सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक – ने लोगों से अनुरोध किया कि यदि सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगों के हितों और आकांक्षा के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो वे लोग एक जनआंदोलन शुरू करें.
आईडिया टीवी न्यूज
गौरव तिवारी
एडीटर इन चीफ