सोनीपत बम ब्लास्ट: अब्दुल करीम टुंडा दोषी करार, सजा का ऐलान कल

नई दिल्ली: हरियाणा की सोनीपत कोर्ट ने आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को साल 1996 में हुए सोनीपत ब्लास्ट में दोषी करार दिया है. सजा का ऐलान कल यानी 10 अक्टूबर को किया जाएगा. टुंडा पर हरियाणा के सोनीपत में वर्ष 1996 में हुए दो सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में सोनीपत की जिला अदालत में केस चल रहा था. वहां उसके खिलाफ चार लोगों ने गवाही भी दी. टुंडा पर सोनीपत में 28 दिसंबर, 1996 को बम विस्फोट करने का आरोप था. उस दिन शाम के समय पहला धमाका बस स्टैंड के पास स्थित तराना सिनेमा के पास हुआ था जबकि दूसरा धमाका दस मिनट बाद गीता भवन चौक पर गुलशन मिष्ठान भंडार के पास हुआ था. धमाकों में करीब एक दर्जन लोग घायल हुए थे.

पुलिस ने इस संबंध में गाजियाबाद निवासी अब्दुल करीम टुंडा और उसके दो साथियों अशोक नगर पिलखुआ निवासी शकील अहमद और अनार वाली गली तेलीवाड़ा, दिल्ली निवासी मोहम्मद आमिर खान उर्फ कामरान को नामजद किया था. पुलिस ने शकील और कामरान को वर्ष 1998 में गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन टुंडा घटना के बाद से लंबे वक्त तक फरार रहा था. अगस्त 2013 में उसे दिल्ली पुलिस ने भारत-नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया था. उस पर पूरे देश में 40 से अधिक ब्लास्ट के मामलों में शामिल होने का संदेह है. उस पर 1993 के मुंबई के ट्रेन धमाकों के अलावा 1996-97 के बीच हुए विस्फोट में भी शामिल होने का आरोप है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अब्दुल करीम टुंडा कैप्सूल बम बनाने में माहिर है. टुंडा के दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, खालिस्तानी आतंकी कश्मीरा सिंह, बब्बर खालसा के चीफ वधावा सिंह जैसे खूंखार और इंटरनेशनल आतंकियों से संबंधों की बात सामने आई है. बताया जाता है कि बांग्लादेश में बम बनाने के दौरान ब्लास्ट हो गया जिसमें उसका बायां हाथ उड़ गया. इसके बाद उसे टुंडा के नाम से लोग बुलाने लगे. वह देसी तकनीक से बम बनाना सिखाता था. लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी संगठनों में उसकी भारी डिमांड थी. वह 1985 में आईएसआई से ट्रेनिंग ले चुका था. टुंडा का जन्म पुरानी दिल्ली में 1943 में हुआ था. बाद में उसके पिता ने पुरानी दिल्ली छोड़ दी और पिलखुवा में जाकर बस गए. बताया जाता है कि टुंडा की हरकतों की वजह से उनको दिल्ली छोड़नी पड़ी.

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