1991 में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझाने के करीब थे: शरद पवार

एनसीपी नेता शरद यादव ने कहा कि 1991 में यदि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार नहीं गिरती तो संभवतया राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान निकल गया होता. उन्‍होंने कहा कि हम लोग इसके समाधान की कोशिशों में लगे थे और उसी दौरान सात माह पुरानी चंद्रशेखर सरकार से मार्च, 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. नतीजतन चंद्रशेखर सरकार गिर गई और वह कोशिशें भी अधूरी रह गईं. शनिवार को एक मराठी न्‍यूज चैनल से बातचीत करते हुए शरद पवार ने यह बात कही.

उन्‍होंने कहा कि नवंबर, 1990 में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. उसके तत्‍काल बाद उन्‍होंने इस दिशा में काम शुरू किए. शरद पवार और राजस्‍थान के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री भैरों सिंह शेखावत को मिलाकर एक अनौपचारिक कमेटी का गठन किया. शरद पवार ने कहा कि मुझे राम जन्‍मभूमि न्‍यास के प्रतिनिधियों से बातचीत करना था और शेखावत को बाबरी मस्जिद एक्‍शन कमेटी के प्रतिनिधियों से बात करनी थी. बाद में संयुक्‍त बैठकें भी हुईं.

शरद पवार ने कहा वे लोग इस फॉर्मूले पर पहुंच रहे थे कि विवादित स्‍थल पर मेमोरियल बनाया जाए, और मंदिर एवं मस्जिद निर्माण के लिए जमीन आवंटित की जाए. इसके तहत विवादित स्‍थल को छोड़कर 60-65 प्रतिशत जमीन पर मंदिर और बाकी 35-40 प्रतिशत पर मस्जिद के निर्माण का फॉर्मूला दिया गया. पवार ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से दोनों पक्ष इससे सहमत थे लेकिन इससे पहले की बात आगे बढ़ती, उसी बीच कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस खींच लिया. बाद में सरकार गिरने के साथ ही बातचीत भी खत्‍म हो गई.

शरद पवार ने अपनी किताब में कहा है कि यदि चंद्रशेखर सरकार अगले सात महीने और टिक जाती तो इस मुद्दे का संभवतया समाधान हो जाता.

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