भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला अगले महीने की शुरुआत में म्यांमार की यात्रा कर सकते हैं। इस यात्रा में वे भारत-म्यांमार के बीच चल रहीं परियोजनाओं की समीक्षा, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और कमांडर-इन-चीफ सीनियर जनरल मिन आंग हिलियान से मुलाकात करके भारत के विद्रोहियों को लेकर चर्चा करेंगे। इस पूरे मामले से जानकार लोगों ने हमारे सहयोगी अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स को यह जानकारी दी।
भारत दो आतंकी समूहों- अराकान आर्मी और अरकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के दोबारा उठ खड़े होने को लेकर काफी चिंतित है। अराकान आर्मी भारत द्वारा व्यापार के लिए माल परिवहन को लेकर कलादान नदी का इस्तेमाल करके म्यांमार के सिटवे बंदरगाह को मिजोरम से जोड़ने के लिए भारत द्वारा वित्त पोषित 484 मिलियन डॉलर के कलादान मल्टी मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को निशाना बना रही है। अधिकारियों का कहना है कि अरकान आर्मी द्वारा परियोजना को बाधित करने की कोशिशें तेज हुई हैं। इसे चीन समर्थित काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी ने ट्रेनिंग दी थी। इस परियोजना पर काम करने वाले लोगों से जबरन वसूली की कई शिकायतें भी सामने आई हैं और खासकर साल 2018 के अंत में अराकान आर्मी का जबसे विस्तार हुआ है, तबसे और अधिक।
म्यांमार दोनों पक्षों के बीच सुरक्षा सहयोग को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। म्यांमार सेना हाल के वर्षों में, भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर भारत विरोधी विद्रोही समूहों पर अंकुश लगाने के लिए तेजी से काम कर रही है। सेना मणिपुर में मोरेह सीमा और अरुणाचल प्रदेश में चांगलांग जिले में काम कर रही है। चीन के सीमावर्ती युन्नान प्रांत में रुइली के माध्यम से आने वाले अवैध चीनी हथियारों से लैस समूह दोनों देशों के सैनिकों की कार्रवाई के चलते दबाव में भी है। इस साल मई में म्यांमार ने मणिपुर और असम में वांछित 22 पूर्वोत्तर विद्रोहियों के एक समूह को सौंप दिया था।
एक वरिष्ठ भारतीय सेना कमांडर ने कहा कि सेना प्रमुख और विदेश सचिव श्रृंगला की म्यांमार यात्रा से पहले प्रारंभिक चर्चाओं में, म्यांमार सेना ने एनएससीएन (के), उल्फा, पीएलए और एनएससीएन (आईएम) जैसे समूहों को नियंत्रित करने के लिए भारत के साथ सीमा पर और अधिक सैनिकों को तैनात करने की इच्छा व्यक्त की है।
यह हाल के वर्षों में म्यांमार और बांग्लादेश द्वारा की गई कड़ी कार्रवाई की वजह से ही हुआ है कि यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम का प्रमुख परेश बरुआ चीन के युन्नान प्रांत में शिफ्ट हो गया है। वहां चीनी खुफिया अधिकारियाों द्वारा भरपूर समर्थन मिल रहा है।
अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान जनरल नरवणे और हर्ष श्रृंगला म्यांमार के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करने वाले हैं, जिनमें वरिष्ठ जनरल, उप वरिष्ठ जनरल सो विन, स्टेट कांउसलर आंग सान सू की और अन्य शामिल हैं। इन बैठकों में चीन को लेकर भी चर्चा होगी। म्यांमार ने न सिर्फ चीन को 1.3 बिलियन डॉलर के क्युक्फ्यू समुद्री बंदरगाह के जरिए से अंडमान सागर के इस्तेमाल की अनुमति दी है, बल्कि वह चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के तहत गैस ब्लॉकों के जरिए से बीजिंग की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं में भी योगदान देने वाला बन गया है।
जैसे कि न्येपीडॉ ने साल 2017 में शांति वार्ता का आयोजन किया था, बीजिंग ने कई विद्रोही नेताओं के साथ कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। पिछले साल जब सेना ने सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों सहित भारी मात्रा में हथियारों का भंडाफोड़ किया था, तो म्यांमार ने हथियारों के चीन से जुड़े होने का जिक्र किया था। इस साल, वरिष्ठ जनरल हेलियान ने एक रूसी टेलीविजन चैनल को बताया था कि म्यांमार में सक्रिय आतंकवादी संगठनों को ‘मजबूत ताकतों’ का समर्थन हासिल है। उन्होंने इसके जरिए से चीन पर निशाना साधा था।
वहीं, इस साल जनवरी महीने में न्येपीडॉ ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ 33 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। यह पिछले 19 वर्षों में चीनी राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। इसके पीछे की विभिन्न वजहों में से क्युक्फ्यू समुद्री बंदरगाह एक वजह थी।
Making India self-reliant in the defence sector. https://t.co/GDgfmgXzAV
— Narendra Modi (@narendramodi) August 27, 2020
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