मीडिया की सुर्खियों, परिसर में जारी आंदोलन और इस शोर-शराबे के बीच काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त सहायक प्रोफेसर डॉ. फिरोज खान की समूचे परिदृश्य से अनुपस्थिति ने बुधवार (20 नवंबर) को वाराणसी में अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया।
कानाफूसी के उस्तादों ने रचा कि मंगलवार (19 नवंबर) शाम डॉ. खान ने कुलपति प्रोफेसर राकेश भटनागर से मिलकर उन्हें इस्तीफा सौंप दिया। कोई और बोला-नहीं इस्तीफा लिखा लिया गया है।
इसी बीच, खबर उड़ी कि उन्होंने योगदान तो दिया नहीं तो फिर इस्तीफा कैसा? पर सवालों के जवाब के लिए डॉ. फिरोज खान उपलब्ध नहीं थे। उनका मोबाइल लगातार बंद आ रहा था। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने वस्तुस्थिति जानने के लिए उनके पिता रमजान खान को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि वह यहां नहीं हैं। जब आएंगे तो बात करा देंगे।
हमने कुलपति प्रो. राकेश भटनागर से सीधा सवाल पूछा क्या डॉ. खान ने इस्तीफा दे दिया है? उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया। बीएचयू के कुछ जिम्मेदार लोगों ने बताया कि डॉ. खान का चयन संस्कृत साहित्य के लिए हुआ है, न कि कर्मकांड के लिए। इस बीच, कुलपति की पहल पर प्रतिष्ठित विद्वानों के माध्यम से आंदोलनकारी छात्रों को मनाने की कोशिशें जारी हैं।
बीएचयू ने कहा-इस्तीफा नहीं हुआ
बीएचयू प्रवक्ता डॉ. राजेश सिंह ने शाम को बताया कि असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यभार ग्रहण करने के अगले दिन ही डॉ. फिरोज खान 20 नवंबर तक अवकाश पर चले गए थे। गुरुवार को उन्हें आना चाहिए। उनसे न तो इस्तीफा मांगा गया है और न ही उन्होंने दिया है।
लेकिन अटकलबाज तर्क देते रहे
इस्तीफे की अटकलें लगाने वाले लोगों ने बाकायदा तर्क भी दिए कि विभाग के प्राध्यापकों को श्रावणी उपाकर्म और कर्मकांड करने होते हैं, डॉ. फिरोज कैसे कर पाएंगे? दूसरा, इसे भुला भी दिया जाए तो इतने विरोध के बीच उनकी सुरक्षा का जिम्मा कौन लेगा? ऐसी ही वजहों से उन्होंने इस्तीफा दिया है।