समिति ने सिफारिश की है कि ले-ऑफ, छंटनी या कंपनी बंद करने से जुडे विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है।
नई दिल्ली। श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की मंजूरी के बिना कर्मचारियों की छंटनी या बंदी की अनुमति होनी चाहिए। औद्योगिक संबंध संहिता पर त्रिपक्षीय विचार-विमर्श में यह प्रस्ताव मतभेद का विषय रहा है। विशेषरूप से ट्रेड यूनियनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। कोरोना वायरस की वजह से लागू राष्ट्रव्यापी बंद के बीच इस समिति ने औद्योगिक संबंध संहिता, 2019 पर अपना प्रतिवेदन लोक सभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को ऑनलाइन सौंपा है
#Ramzan is the time to offer prayers&seek blessings. It's also the time to pray for safety of people across the world, from #Coronavirus. Religious&social leaders & centre have appealed to people to offer prayers with prevention&precaution at home: Union Min Mukhtar Abbas Naqvi pic.twitter.com/RQRSlG69X1
— ANI (@ANI) April 25, 2020
समिति ने सिफारिश की है कि ले-ऑफ, छंटनी या कंपनी बंद करने से जुडे विशेष प्रावधन उन उद्योग प्रतिष्ठानों पर लागू होने चाहिए जिनमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 300 है। अभी ये प्रावधान 100 कर्मचारियों वाली कंपनियों पर लागू होते है। समिति ने इसे बढ़ाकर 300 करने का सुझाव दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति के संज्ञान में आया है कि कुछ राज्य सरकारों मसलन राजस्थान में इस सीमा को बढ़ाकर 300 किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि इससे रोजगार बढ़ा है और छंटनियां कम हुई हैं। समिति ने सिफारिश की है कि कर्मचारियों की इस सीमा को औद्योगिक (श्रम) संबंध संहिता में ही बढ़ाया जाए। समिति ने किसी ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के आवेदन की प्रक्रिया को पूरा करने और उस पर फैसला करने के लिए 45 दिन की समय सीमा का सुझाव दिया है।
समिति का कहना है कि जांच का नतीजा बेशक कुछ भी आए, इसकी समय सीमा 45 दिन की होनी चाहिए। समिति ने हड़तालों पर उदार रुख अपनाते हुए इसे औद्योगिक कार्रवाई की आजादी बताया है। समिति को अंशधारकों से इस तरह के सुझाव मिले थे कि हड़ताल के लिए नोटिस की अवधि को 14 से बढ़ाकर 21 दिन किया जाए। बीजू जनता दल सांसद भर्तुहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि उद्योगों पर कर्मचारियों को लॉकडाउन की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।
तमिलनाडु: मुख्यमंत्री की पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के बाद कोयंबटूर में बड़ी संख्या में लोग सब्जी खरीदने पहुंचे। मुख्यमंत्री के.पलानीस्वामी ने 26अप्रैल से 29अप्रैल तक सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है। #coronaviruslockdown pic.twitter.com/sB7gvgQ0Gi
— ANI_HindiNews (@AHindinews) April 25, 2020
रिपोर्ट में समिति ने किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्रतिष्ठानों के बंद होने की स्थिति में श्रमिकों को वेतन देने को लेकर आपत्तियां उठाई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप, बाढ़, चक्रवात आदि की स्थिति में कई बार प्रतिष्ठानों को लंबी अवधि के लिए बंद करना पड़ता है। इसमें नियोक्ता की कोई गलती नहीं होती। ऐसे में श्रमिकों को वेतन देने के लिए कहना अनुचित होगा। महताब ने कहा कि उद्योगों को मौजूदा बंदी कोविड-19 संकट की वजह से करनी पड़ी है। ऐसे में उन पर कर्मचारियों को बंद की अवधि का वेतन देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।
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